चिर – चिर होते दिवस

पूछा मै किसी से भव कहाँ तेरा ? न जाने क्या भार लिए , कबसे ? पीड़ा भी घूँट – घूँट के पी रहे थे मै विस्मित – सा , क्या हुआ इसे ? वहीं उन्मादो – सा मशक्कत कर को इसरार लिए साश्रु का सबल नहीं विभीत सीकड़ में सहर के प्रतीर घनघोर शोणित के धरणी के भार यह कमान खल के प्रचण्ड पर सर नहीं क्यों लूटता लहू भी मुफ़लिस के ? चिर – चिर होते दिवस के शिथिल ज़र पङ्ख के भृत्य लगे दोजख के वज्रवधिर से पूछो क्यों निहत निशा ? ध्वनित भी नेति प्रहर क्या परिहत ? भोर – विभोर भी तिमिर मे कबके मलिन यह मिति भी क्या नहीं देती चिङ्गार ? बाट जोह जोड़ रहा इन्तकाल देह के साँस भी मिलती यहाँ घूँटन के गरल जईफ दरकार तरुवर अन्य करती वीरान विप्लव बाँछती लहर ऊर्ध्वङ्ग मातम