रात रानी आयी


रात रानी आयी पङ्ख पसारे 
झिलमिल-झिलमिल कितने है निराले !
हैरान हो चला,  पता नही मुझे...?
गुमसुम  में क्यों खो जाते है लोग ?
चिडियाँ भी गयी , सूरज भी गया...
पेड़ भी सोने क्यों चले गए कबसे ?

देखो चन्द्रमा की प्यारी - सी मुस्कान 
रह जाते क्यों तुम आमावस्या को अधूरे ?
फिर पूर्णिमा को पूरे कहाँ‌ से चले आते हो !
आसमान हो गए जिससे प्याले - प्याले
असमञ्जस में मुझे क्यों तुम रखते हो ?
 इसका  भी  रहस्य  मुझे  बताओ  न

उपर - ऊपर देखो दिखता उद्भाषित तारें
यें छोटे- छोटे झिलमिलाते क्यों दिखते है ?
इन्हें माता - पिता का डर है या शिक्षकों का
घर जाने के लिए यें क्यों रोते सदा ?
मै भी रोता, तू भी रोते रहते हो
इसलिए चलो आज मै तू दोस्त बन जाते है ।

ध्रुव तारा के कितने पास सप्तऋषि तारें हैं !
  चारों ओर मण्डल सदैव जिसके चक्कर लगाते
स्वस्तिक चिन्ह अग्रेषित रहने का सन्देश देती 
शान्ति समृद्ध प्रेम का पैगाम पहुँचाती हमें
अरुण अगोरती अनजान  प्राची क्षितिज से
बढ़ चला उषा सदैव सवेरे पन्थ पखारे

                                                                

    ( वरुण सिन्ह गौतम )

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का आरेखी प्रस्तुतीकरण Part 3 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics