रणभेरी में रण नहीं



पङ्क्षी घोंसले से क्यों लौट रही ?
आजादी क्या इनकी छीन- सी गई !
या यहाँ कोई दरिन्दों का बसेरा है
भूखे - प्यासे है यें कैसे जानें ?
जख्म पड़ी चहुँओर प्याले वसन्त
दुर्दिन लौट गया उस क्षितिज से 

करूणा व्याथाएँ को जगाएँ कौन ?
विभूत अरुण नही पन्थ- पन्थ में
उन्माद लिए कबसे अचल असीम
रणभेरी में रण नहीं आरोहन के
बटोरती ऊर्ध्वङ्ग मधुमय भुजङ्ग
प्यास भी बिखेरती अकिञ्चन नभ नहीं

कहाँ खोजूँ अमरता छू लूँ अविकल 
आघोपान्त रहूँ तड़ित झँकोर गगन
गुमराही नहीं मानिन्द निकन्दन उपवन से 
स्वर - ध्वनि नूपुर के अभिजात नवल 
बढ़ चला अलङ्गित पन्थ- पन्थ पतझर भरा
मजार में नहीं मञ्जर का पथ पखार 

अम्लान - सी अदब करूँ मातृभूमि व्योम की
मुकुलित गिरिज पङ्किल से करती नतशीर
किञ्चित् कस्तूरी मिलिन्द मैं द्विजिह्व लिए
मही  छवि  उर  में  कुसुम  मलयज
घन - घन घनप्रिया कैसी करती क्रन्दन ?
आँसू बूँद - बूँद करके धोएँ कलित नयन 

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