मैं हूँ आर्यावर्त



हम नभ के है रश्मि प्रभा चल
उड़ता गर्दिशो मे पङ्क्ति प्रतीर के अचल
केतन ले चलूँ मैं मातृ-भूमि के वसन्त
अरुण मृगाङ्क जहाँ निर्मल करती नयन

निर्वाण आलिङ्गन वतन के हो जहाँ तन
शङ्खनाद मेरी महासमर के हुँकार के हो भव
अर्जुन – कर्ण के प्रतीर जहाँ कृष्ण के जहाँ पन्थ
अभिमन्यु हूँ चक्रव्यूह के शौर्य ही मेरी दस्तूर

गङ्गा – सिन्धु धार वहाँ अश्रु मैं परिपूर्ण
नगपति हूँ आर्यावर्त के दृग धोएँ पद्चिन्ह
खिला कुसुम कश्मीर के शिखर चला सौगन्ध
स्वछन्द तपोवन तीर का लहुरङ्ग के मलयज

उन्माद बटोरती तस्दीक के गुमनामी पतझर
मधुमय कलित मन मे क्या करूँ मै प्रचण्ड ?
शून्य क्षितिज तड़ित न जाने हेर कौन रहा ?
तरङ्गिनी तरी सर चला जलप्लावन तरङ्ग

उद्भाषित प्रतिपल का जगा कस्तूरी उरग के
त्वरित प्रच्छन्न वनिता वदन रुचिर उर में
यह द्युति त्रिदिव के इला गिरि समीर सर
नीले – नीले दिव नयन इन्द्रधनुषीय – सी मयूर


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