इन्तकाम - मां २०



1. इन्तकाम

मत  देख उस भुजङ्ग को ,

गरल  का घड़ा  भरा  है ।

ह्रदय  की वेदना  समझों ,

मारुत   की  बवण्डर   है ।


मत  पूँछ उस लालिमा को ,

उनकी  ज्योतिमान धरा है ।

कर  मशक्कत  हो  प्रभा ,

वों बुलन्दी का आलम्भन है ।


मत  सुन उस भ्रममूलक को ,

मिथ्या  का  पुष्ट आबण्डर  है ।

छल - प्रपञ्च   परवशता  ही ,

निशाचर   का  कुजात   है ।


मत  कर उस  अशिष्टता  को ,

अधर्मपना अभिशप्त साँकल है ।

अपकृष्ट अनावृष्टि बाँगुर गात ही ,

घातक अंज़ाम का  द्योतक  है ।


मत   हन्स  उस  मुफलिस  को ,

दमन  का  व्यथा  असह्य   है ।

वक्त  का  आसरा  है   उसे ,

इन्तकाम का ज्वाला उग्र   है ।


2. हड़प्पा सभ्यता


सिन्धु नदी का प्रवाह जहाँ

हड़प्पा सभ्यता का विकास वहाँ

पुरावस्तुओं - साक्ष्यों का अन्वेषण

सन्स्कृति सभ्यता का है पदार्पण


मध्य रेलवे लाइन तामील दौर

बर्टन बन्धुओं इत्तिला आईन से

आया हड़प्पा सभ्यता का इज़्हार

नई सन्स्कृति नई सभ्यता का दौर


बहु नेस्तनाबूद भी बहु प्रणयन भी

नगरीकरण का आसास उरूज़

निषाद जाति भील जानी काया

मिले  मृण्मूर्तियाँ  वृषभ  देहि


चार्ल्स मैसेन  की  पहली खोज

कनिङ्घम आए, आए दयाराम साहनी

आया मोहनजोदड़ो का वजूद भी

रखालदास बनर्जी का है तफ़्तीश


अन्दुस - सिन्धु - हिन्दुस्तान रूप

बृहत - दीर्घ  इतिवृत्त  सभ्यता

क्षेत्रीयकरण - एकीकरण - प्रवास युगेन

मिला अवतल चक्कियाँ  का  राज


विशिष्ट अपठनीय हड़प्पा  मुहर

कान्स्य युगेन का कालचक्र आया

मोहनजोदड़ो, कालीबङ्गा, लोथल,

 धोलावीरा, राखीगढ़ी का यहीं केन्द्र


कृषि प्रधान की अर्थव्यवस्था

और थी व्यापार और पशुपालन

अनभिज्ञ थे घोड़े और लोहे से

जहाँ कपास की पहली काश्तकारी


 बृहत्स्नानागार सङ्घ का अस्तित्व

थी स्थानीय स्वशासन सन्स्था

धरती उर्वरता की देवी थी

शिल्पकार, अवसान का इस्बात है



3. जीवन  का   प्रादुर्भाव


सौर निहारिका की अभिवृद्धि से ,

हुआ  हेडियन पृथ्वी का निर्माण ।

आर्कियन युग  का  आविर्भाव ,

हुआ  जीवन  का   प्रादुर्भाव ।


हीलियम व हाईड्रोजन संयोजन से ,

सूर्य नक्षत्र  का  आह्वान  हुआ ।

कोणीय आवेग के प्रतिघातों  से ,

हुआ व्यतिक्रम  ग्रहों  का  निर्माण ।


ग्रह - उपग्रह  का  उद्धरण  आया ,

आया  गुरुत्वाकर्षण  का  दबाव ।

ज्वालामुखी सौर वायु के उत्सर्जन से ,

हुआ  वातावरण  का   प्रसार ।


सङ्घात सतह  मेग्मा  का  परिवर्तन ,

किया मौसम - महासागर का विकास ।

लौह प्रलय के प्रक्रिया विभेदन से ,

ग्रहाणुओ से स्थलमण्डल का विकास ।


अणुओं रासायनिक प्रतिलिपिकरण से ,

मिला जीवाणुओं से जीवन का आधार ।

आवरण  सन्वहन  के  सञ्चालन  से ,

हुआ  महाद्वीप प्लेटों  का  निर्माण ।


एक कोशिकीय से बहु कोशिकीय बना ,

वनस्पति से मानव का विकास हुआ ।

सन्स्कृतियाँ  आई  सभ्यताएँ आई ,

है  मिला विश्व जगत  का  सार ।


सम्प्रदायों  के  परिचायक एकता  से ,

मिला  टेक्नोलॉजी  का  आधार ।

राजतान्त्रिक  से  लोकतान्त्रिक  बना ,

हुआ  मानव  कल्याण  का  विकास ।



4. हूँकार


कुसुम  हूँ या दावानल  हूँ

महाकाव्यों का सार  हूँ  मैं

जगत का प्रस्फुटित कली  हूँ

जनमानस का कल्याण  हूँ  मैं


वात्सल्य  छत्रछाया  व्योम  का

विप्लव   पतझड़  हूँ  मैं

नूतन  सारम्भ उन पयोधर का

मधुमास   द्विज  हूँ  मैं


क्षणभङ्गुर नश्वर मञ्जूल काया

नवागन्तुक मुकुल चेतना हूँ  मैं

अचिन्त्य  रङ्गीले   स्वप्न

रत्नगर्भा का सन्सार  हूँ  मैं


श्रीहीन का करुण वेदना

क्षुधा का खिदमत  हूँ  मैं

अवसाद का है हाहाकार

निराश्रय का शमशीर हूँ  मैं


अनुराग   प्रकृति   पुजारिन

सरिता पुनीत धारा  हूँ  मैं 

सलिल - समीर - क्षिति  चर

सुरभि सविता सिन्धु  हूँ  मैं


अभञ्जित अचल अविनाशी

 गिरिराज हिमालय हूँ  मैं 

सिन्धु - गङ्गा - ब्रह्मपुत्र  उद्गम

महार्णव का समागम हूँ  मैं


व्यथा हूँ , उलझन हूँ , इन्तकाल हूँ

दिव्यधाम भू - धरा हूँ  मैं

किञ्चित माहुर उस भुजंग की 

अमृतेश्वर का रसपान हूँ  मैं


रश्मि चिराग रम्य उर की

मदन आदित्य नग हूँ  मैं

मत पूछ मेरे रुदन हृदय की

अतुल  चक्षुजल हूँ  मैं


मत खोज तिमिर आगन्तुक को

उसी का अविसार हूँ  मैं

जन्म - आजन्म के भन्वर से

अन्तरात्मा का आधार हूँ  मैं


जगदीश का फितरत महिमा

कुदरत का कलित हूँ  मैं

मधुऋतु अपार  सौन्दर्य

ऋजुरोहित सप्तरङ्ग हूँ  मैं


स्वतन्त्र हूँ ,  जद हूँ , श्रृङ्गार हूँ

नभ का उड़ता परिन्दा हूँ  मैं

प्रलय - महाप्रलय समर का

शङ्खनाद का हूँकार  हूँ  मैं



5. शिक्षा का हूँकार


इमदाद नहीं, शिक्षा का हूँकार हो,

ज्ञान - दक्षता - सन्स्कार का समाविष्ट हो ।

परिष्कृत अन्तर्निहित क्षमता व्यक्तित्व,

सङ्कुचित नहीं,  व्यापक प्रतिमान हो ।


सभ्य, समाजिकृत योग्य ज्ञान - कौशल,

सोद्देश्य सर्वाङ्गीण सर्वोत्कृष्ट विकास हो ।

प्राकृतिक प्रगतिशील सामञ्जस्य पूर्ण,

राष्ट्रीय  कल्याण और  सम्पन्नता  हो ।


पूर्णतया अभिव्यक्ति समन्वित विकास ही,

अन्तः शक्तियाँ बाह्यजीवन से समन्यव हो ।

औपचारिक - निरौपचारिक - अनौपचारिक नहीं,

स्मृति - बौद्धिक - चिन्तन  स्तर प्रतिमान हो ।


स्वाबलम्बी - आत्मनिर्भर - सार्थकता नीन्व ही,

गांधीवाद सशक्त प्रासङ्गिक अनुकरणीय हो ।

स्वायत्ता कौशलपूर्ण आत्म - नियमन समाज,

समतामूलक  स्वराज  का सदृढ़ राष्ट्र  हो ।


सम्प्रभुत्व सम्पन्नता, समानतावादी एकता,

प्रतिष्ठा, गरिमा, बन्धुत्वा, मौलिक अधिकार हो ।

अखण्डता, अवसरता, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य,

सामाजिक - आर्थिक - राजनीतिक न्याय विचार हो ।


बेरोजगारी, अपने, रुग्ण आबादी, प्रदूषण,

अभिशप्त, अन्धकारमय, श्रीहीन, इन्तकाल है ।

सामाजिक नैतिक आध्यात्मिक मूल्य ही,

 आधुनिकीकरण विकसित आर्थिक देश है ।


स्वच्छता, सततपोषणीय, स्वनिर्भर भारत,

आदर्शवादी, सशक्तिकरण, समतामूलक समाज हो । 

मानवीयता, सशक्तिकरण, समतामूलक समाज, 

 अनुसन्धान - तकनीकी नवाचारों का प्रगतिमान हो ।


6. शहीदों की दास्तां


आजादी  का  मतवाला हूँ

 कुर्बानियों की जज्बात है हमें

भारत के ज़ञ्जीरों को हटाएँगे

उन फिरङ्गियों को भी भगाएँगे


दूध कर्ज चुकाने का वक्त आया

उठ जाओ,  दहाड़ दो उसे....

आजादी थी, सबकी चाहत

अपनी जमीं अपना आस्मां


अमर हैं वों वीर सपूतों

जिसने जान की बाजी लगा दी

शहीद हो गये उन वतनों पर

दे दी अपनी अमूल्य कुर्बानी


जान न्योछावर हो रही वीरों की

रो रही माँ की वेदना-सी आञ्चल

न जाने बहना की वों कलाई

क्यों दूर होती जा रही थी उनसे


घायल हिमालय की वों व्यथा

दर्द सह रही थी वों दास्तां

आजादी का आवाह्न अब है

जहाँ भारत की सङ्घर्ष काया


गुलामी की जञ्जीर मुझे ही क्यों

उन वीरों  से  जाकर पूछो....

कालापानी और जेलों की दीवार

तोड़ देंगे हम उन बन्धनों को


खून से खेल जाएँगे हम

मर  मिटेंगे  उन  वतनों  पर

छूने  नहीं  देंगे उन पर को

जहाँ हैं वीर सपूतों की दास्तां



7. पलट रही विश्वकाया



मोहमाया  के जगत में,

अवमान - मान का तिलम  है ।

सुख - दुःख का मिथ्या रिश्ता,

दर्द भरी कहानी है सबका ।

कोई  जीता  रो - रोकर....

आर्थिक के अभिशाप से ।

कोई जीता है हन्स - हन्सकर,

चोरी - डकैती - लूट - हत्या से

न  किसी का कभी था,

न  होगा  कभी  किसी  का ।

कहीं सत्ता की लूटपैठी है,

कहीं मजदूरी भी नसीब नहीं ।

क्या यहीं आदर्शवादी है ?

क्यों दिगम्बर हो रहा सन्सार !

वृक्ष - काश्त हो रही विरान,

पलट   रही   विश्वकाया ।

जल के लालायित है अब,

अब होंगे प्राणवायु के व्यग्रता ।

क्या होगा अब इस जगत का ! 

जब हो जाएगा मानव दुश्चरित्र ।




8. इतिहास


इतिहास     हमारा    इतिहास 

प्रागैतिहासिक  का   इतिहास 

इतिहास रामायण  काव्य  का 

महाभारत काव्य का इतिहास 



हमारे देश का गौरव गाथा 

गौरव     पूर्ण     इतिहास 

इतिहास   उन   देश   का 

जहाँ  से  वीरों  की  गाथा 



इतिहास    हमारी     पहचान    है 

जिससे  मिलती  जीवन  की  कला 

इतिहास   उन   काल   की   गाथा 

जहाँ से हम लोगों का विकास हुआ 



इतिहास  उन   साम्राज्यों  का 

जिसने  विश्व  पर  राज  किया 

इतिहास  उन  सन्स्कृतियों  का 

जहाँ से मिलती  हमारी सम्पदा 



इतिहास      उन      धर्मों      का 

जिसको  सभी   ने  धारण  किया 

इतिहास  उन  कृषि   प्रणाली  का 

जहाँ से किसान वर्ग सम्मिलित हुए 



इतिहास उन सैनिक  विद्रोह का 

जिससे सभी को आजादी मिली 

इतिहास  उन   विश्व   युद्ध  का 

जहाँ  से देश  का विस्तार  हुआ 



इतिहास   उन   भूगोल   का 

जिससे  पृथ्वी का ज्ञान हुआ 

इतिहास  उन  वनस्पति  का 

जहाँ से रोगों का इलाज हुआ 



इतिहास  उन मन्दिर - मस्जिद  का 

जहां से किसी धर्म की पहचान हुई 

इतिहास      उन     क्रान्ति      की 

जहाँ से लोगों  का अधिकार मिला



इतिहास    हमारा    इतिहास 

प्रागैतिहासिक  का   इतिहास 

इतिहास रामायण  काव्य  का 

महाभारत काव्य का इतिहास 



9. गणतन्त्र दिवस


गणतन्त्र दिवस आया भाई, गणतन्त्र दिवस आया।

सबका प्यारा, सबका न्यारा, हमारा गणतन्त्र दिवस आया ।

हमारा संविधान आया, भारत का कानून व्यवस्था आया ।

इसी से हमारी पहचान हुई, इसी से हमारी सम्मान ।

बच्चे-बुजुर्ग सभी चलें गणतन्त्र दिवस का झण्डा फहराने ।

हमारे मन पावन, सब के मनभावन हमारा प्यारा गणतन्त्र दिवस ।



यह हमारा पर्व है, संविधान का पर्व है, सबका पर्व है ।

छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास का पदार्पण हुआ और स्वतन्त्र गणराज्य बनाया ।

चाचा नेहरू,डॉ राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल और डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर का अहम योगदान रहा ।

गणतन्त्र दिवस भारत को लोकतांत्रिक देश बनाया और हमलोगों को मौलिक अधिकार और सम्मान दिलाया ।



सुनो भाइयों, सुनो बहनों, सभी दिल्ली चलें 

भारत के राष्ट्रपति महोदय के झण्डा तोलन देखने चलें ।

भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरङ्गा की सलामी देखने चलें ।

परेड के साथ इण्डिया गेट से राष्ट्रपति भवन चलें।

हमारे भारत देश के सिपाही सभी को सलाम करते चलें ।

भारत के धरोहरों की शान और विलासिताओं को देखने चलें ।



हमारा गणतन्त्र दिवस राष्ट्रीयता का भाव जगाता ।

स्वतन्त्रता आन्दोलन के वीर शहीदों की याद दिलाता ।

हमारे देश की सन्स्कृति और विविधताओं की पहचान कराता ।

करोड़ों लोगों के दिलों में भारत माता की जय की भाव जगाता ।

सभी प्रण लें कि हिन्दुस्तान के नदी, पर्वत - पहाड़, जङ्गल, खेत-खलियान का संरक्षण और सम्मान करें ।



10. दोस्ती 


दोस्ती उस ज़िन्दगी का साथ है

जहाँ आत्मा दूसरे आत्मा से जुड़ाव है

यह दोस्ती नहीं झुकने देती और न ही मरने

यहीं रिश्ता की मनमोहक सुगन्ध है

जहाँ समाज का आनन्ददायक है

एक दोस्त ही दूसरे दोस्त का दर्द जानता

दोस्ती ही  सुख - दुःख के समय में साथ देता

वहीं दोस्ती का मिसाल है और है कथा

पौराणिक कथा से भी मिलती दोस्ती की मिसाल

जहाँ राम सुग्रीव की दोस्ती सिखाती है बुरे वक्त में साथ देना 

वहीं कर्ण दुर्योधन की दोस्ती की भी मिसाल हैं

जहाँ सीखने को मिलती है किसी दोस्ती का आभार

कृष्ण-सुदामा की दोस्ती की गाथा मनमोहक है 

जो हमें सिखाती है दोस्ती की अहमियत

दोस्ती शान - आन और विश्वास है

दोस्ती पैसों से नहीं दिलों से की जाती है

दोस्ती ऐसा रिश्ता है जहाँ टकराव भी है और प्यार भी

दोस्ती जीवन का वह हिस्सा है जहाँ जाती है वहीं बन जाती

दोस्ती ही जीवन की हर खुशनुमा मिठास है

जहाँ निराश जीवन में आशा की दीप जलाती

दोस्ती ऐसा समुन्दर है जिसकी कोई थाह नहीं

अगर मेरा दोस्त नाव है तो मैं उनकी पतवार

अगर मेरा दोस्त वृक्ष है तो मैं उनकी छाया

अगर मेरा दोस्त चन्द्रमा है तो मैं उनकी शीतलता

अगर मेरा दोस्त सृष्टि है तो मैं उनका जीवन

मेरा दोस्त अस्तित्व है जिससे मुझे पहचान मिलती है

जीवन के हर पड़ाव में मिलता है दोस्ती का साथ


11. अरुणिमा



अमरूद लीची तरबूज आम

आओ खाओ मेरे प्यारे राम

उछलो - कूदो खुशी मनाओ

सब मिल एक साथ हो जाओ


गर्मी आयी,  आयी बरसात

झूम - झूम झमाझम की रात

काले - काले अन्धियारे बादल

गड़ - गड़, गड़ - गड़ कौन्ध गदल


स्वच्छन्द मुल्क का परिन्दा हूँ

मैं हूँ इस घोन्सले का बाशिन्दा

आचार्यों के बड़प्पन का क्या नजीर !

उनके निकेतन की क्या अन्जीर !


 देने आया मुबारकबाद ईद त्योहार

पैगम्बर मोहम्मद का रहनुमा अनाहार

भाई - बहनों का अटूट बन्धन है

प्रेम के धागों से होता रक्षाबन्धन है


विजयादशमी है विजय का सन्देश

कर्तव्य मर्यादा सत्यनिष्ठा का रहा उपदेश

दीपोत्सव आया आओ सब दीप जलाएँ

घर में ढेर सारी हर्षोल्लास लाएँ


 ठण्डी - ठण्डी हवाओं के सङ्ग

सब हो रहे हैं यहां अङ्ग - बङ्ग

वसन्त ऋतु मौसम बड़ा सुहाना

खेचर नाद क्या चुहचुहाना !


खालसा पन्थ की आदि ग्रन्थ महिमा

गुरु  पर्व  प्रतिष्ठापक  अरुणिमा

देखो क्रिसमस डे की प्रभा सितारा

ईसा मसीह आमद का अन्तर्धारा



12. ऐ सुशान्त



ऐ सुशान्त कहाँ  है आप 

लौट आएँ अब इस धरा पर

क्या थी उलझनें यहाँ  ?

क्यों गए इस खलक से ?


कहाँ गए ? अब कैसे खोजूँ

इस रञ्जभरी भव छोड़

कहाँ  अन्तर्हित हो गए आप ?

सपनों के बहार में आ जा


नहीं तो मेरे कभी ख्वाबों में

झलक का भी एक पैग़ाम दे जा 

ऐ गीर्वाण सुन न मेरी सार

आपको परवाह नहीं मेरी !

 
मेरा प्राण प्रतिष्ठा हो आप 

तेरी विरह अग्नि, रञ्जीदा मेरी

इस भग्न हृदय का क्या करूँ मैं

 यह वेदना तो क्षणभङ्गुर नहीं


तन - मन की व्यथा प्रबल मेरी

कैसे समझाऊँ अन्तःकरण को

श्रद्धायुक्त करपात्र में क्या कहूं

अनन्तर ही कभी पनाह देने आ जा


13. जञ्जीर



जञ्जीर  में  मुझे  मत  बान्धो

मैं  उड़ने  वाला  परिंदा  हूं 

दबाव  तले बोझ  बने  हम

घूँट - घूँट कर जी  रहे  हम 


तप  रहे  मोहमाया जाल से

बच - बचकर  जी  रहे  हम

मुझे बेचैनी है, इस जीवन में

कोई साथ नहीं, सहारा नहीं


एक भी नीन्द सो लूँ चैन का

तन - मन - धन, व्यथा रहित

सारा  जगत  क्षणभङ्गुर  है

भूल जाऊँ सदा इस जीवन को


कब  आए   वों  रैन  बसेरा ?

जन्म - जन्म तक नाता न तोड़ू

उड़  जाऊँ  मैं  उन  हवाओं  में

नई  हौसले से नए उड़ान भर दूँ


परिन्दा की तरह स्वच्छन्द हो जाऊँ

जहाँ मिले सदा तरुवर की छाया

छूम लूँ उन  तमाम बुलन्दियों  को

सङ्घर्षरत दुनिया का रसपान करूँ


14. दावाग्नि


विश्वपटल का हो रहा खतरा

मनुष्य सभ्यता के दोहन से

तनुधारी मरणोन्मुख रोदन

सर्वव्यापी विषदूषण है

त्राहिमाम - त्राहिमाम करता जग

हो रहा नापाक त्रिविधवायु है


दावाग्नि, अनुर्वरा, अनावृष्टि धरा

कङ्गाल हो रहा है विश्वधरा

वीरवह की है अभिवृद्धि

है खौल रहा पटल काया


मासूमियत का है चित्कार 

क्यों हो रहा है हीनाचार ?

बेरोजगारी का मजमा है

क्यों कर रहे आत्मदाह ?


सत्य - आस्था का दुनिया नहीं

अभिताप का तशरीफ़ रहता 

असामयिक तबदीलन से

हो रहा प्रकृति का पतन



15. कलम



अब कलम टूट पड़ेगी , 

अन्यायों  के  खिलाफ ।

भ्रष्टाचार  के उपद्रव  से ,

अब  चुप  नहीं  बैठेंगे ।

धर्म - अधर्म के मतभेद नहीं ,

अत्याचारों  का  आतंक  है ।

पिता-पुत्र में अन्तरभेद नहीं ,

जहाँ जाएँ कलयुगी विनाश है।

हम कर्तव्यपरायणता भूल रहे ,

भूल रहे महाकाव्यों का सार ।

घूसखोरी की अतिभय  से ,

दीन - हीन तड़प रहे हैं ।

 क्या है ? , क्या होगा जमाना ?

ईश्वर  भी  आश्चर्य  है ।

सत्य - झूठ के अन्तरभेद नहीं ,

पैसों के बल से बिक जाते हैं ।

दोषी, निर्दोषी बन जाते हैं ,

 फंस जाते हैं निस्सहाय ।

न्याय - अन्याय दिखावा है ,

सत्यमेव जयते है मिथ्या ।


16. एकान्त



एकान्त जीवन का आधार है

आनन्दमय व चरमोत्कर्षक

अनुरक्त हो अन्तः करण में

आत्मविस्मृत   बेसुध-सा


अन्तर्मुखी वृत्तियाँ अनुरूपण

जग - सन्सार स्वच्छन्द हो

चान्दनी रात के सितारे मनोरम

शून्यता - अशब्दता अपार हो


मन्द - मन्द बहती पवन

छन्द - छन्द हिलते पल्लव

सागर की कलकल करती नीर

अनुपम रहा पर्वत हिमालय



तत्वों  के  केन्द्र  बिन्दुओं ‌ से

रवि  का  है  ऊर्जा  निदाग  

शून्य - शान्त जीवन सरोवर में

अन्तर्धान हो जा आत्म गात में


प्रकृति  की  कृती कृति  है

ईश्वरप्रदत  का रत रति  है

जन्म - मरण के यथार्थ से

सर्वदा सदाव्रत रहता एकान्त


17. चल मुसाफिर


मुश्किल भरी ज़िन्दगी में,

संघर्षरत का दुनिया है।

अभिजय का है सरताज,

जो महासमर का अर्जुन है।

चल मुसाफिर, अभ्यस्त हो जा,

चन्द्रहास का अब वक्त आया है।

कोयला से हीरा बनने की तमन्ना,

दीवानगी के प्रतिच्छाया है।

तू तोड़ दे उस जञ्जीरों को,

 आफत की धारा का भञ्जन कर।

रख हौसला, वक्त का आसार है,

प्रारब्ध को बदलने गर्जन का आसरा है।

जीत की आरजू हर मानस का हो,

विश्वपटल का यही है पुकार।

कर अटूट फैसला, उन्माद रख,

यथार्थ में जीत का हवस का आस है।

पराभव का अफसाना दूभर नहीं,

जहाँ विजय का भी राह है।

आन - बान - शान का दास्तां,

बुलन्दी साहचर्य का परवाना है।


18. समय का परिन्दा



रे उड़ता समय का परिन्दा,

थोड़ा रुक, थोड़ा ठहर जा।

इतना है क्यों बेताब ?

नजाकत दुनिया को देख।


रक्तरञ्जित हो रहा सन्सार,

गर्वाग्नि प्रज्ज्वलित हो रहा।

पसरा है बीमारी का तांडव,

क्यों हो रहा है विकराल।


ओहदे के पौ बारह हैं,

धरणी सङ्कुचित हो रहा।

जीवन के दुर्दशा हिरासत में,

मालिक - मुख्तार का जमाना रहा।


गोलमाल का सदाव्रत रहता,

रुखाई का नौबत दुनिया है।

दौलत के प्रलोभन से,

रिआया का अपघात है।


मिथ्या का ही फितरत,

निश्छलता का भग्न हृदय है।

बेआबरू का है इज्जत,

अवधूत हो रहा मानवीयता।


19. ऐ नगेश हिमालय !


ऐ नगेश !     रक्षावाहिनी !

ऐश्ववर्य - खूबसूरती  महान !

प्रातः कालीन का सौन्दर्य तुङ्ग,

रत्नगर्भा     मानदण्ड    हो !

मार्तण्ड नीड़ - पतङ्ग में तान रहा,

पुरुषत्व समवेत महीधर हो ।

जम्बू द्वीपे  के   हिम   उष्णीष,

सिन्धु - पञ्चनन्द - ब्रह्मपुत्र के चैतन्य।

तू  ही  ब्रह्मास्त्र -  गाण्डीव  हो,

रत्न - औषधि - रुक्ष का वालिदा,

हिमाच्छादित,  वृक्षाच्छादित हो।



युग -  युगान्तर तेरी महिमा,

गौरव  -  दिव्य  -  अपार।

टेथिस   सागर   प्रणयन  है,

जहाँ ऋषि-मुनियों का विहार।

जीवन की अंकुरित काया,

सर्वशक्तिमान नभ धरा हो।

प्रियदर्शी - पारलौकिक - अजेय, 

सान्स्कृतिक - आर्थिक अविनाशी हो।

सुखनग  -  अभेध   -   जिगीषा,

  शाश्वत   ही  पथ  प्रदर्शक  हो।



कैसी अखण्ड तेरी करुणा काया ?

 तड़प रहा  विश्वपटल  का राज।

सदा पञ्चतत्व में समा रहा,

कोरोना के रुग्णता का हाहाकार।

मुफलिस कुटुम्ब नेस्तनाबूद हुए,

मरघट हो रहा कृतान्त का समागम।

क्यों  मौन  है  ऐ  विश्व  धरा ?

ले अंगड़ाई, हिल उठ धरा।

कर नवयुग शङ्खनाद का हुँकार,

सिङ्हनाद से करें व्याधि विकार।






20. माँ


सृष्टि की जननी नारी हो।

 ममतामयी वात्सल्य हो।

पूजा - भूषण - मधुर का सत्कार हो।

अर्धनारीश्वर साम्य का उपलक्ष हो।


 तू सरस्वती माँ की वाणी हो।

 कोकिला का पञ्चम स्वर हो।

सभ्यता व सन्स्कृति का प्रारम्भ हो।

खेती व बस्ती का शुरुआत हो।


तू ही ज्योतिष्टोम का स्वरूप हो।

वेदों की इक्कीस प्रकाण्ड विदुषी हो।

सोमरस की अनुसरण हो।

 ब्रह्मज्ञानिनी का अनुहरत हो।

 

मीराबाई  जैसे बैरागी हो।

लक्ष्मीबाईण जैसे राजकर्ता हो।

 सावित्री जैसे पतिव्रता नारी हो।

लता मंगेशकर जैसे स्वर साम्राज्ञी हो।


विश्वसुन्दरी की ताज हो। 

प्रलय का नरसङ्हार भी हो। 

तू प्रियवन्दा‌ व पतिप्राणा हो।

 बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा हो।


































टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का सारणीकरण तथा सारणी के अंग Part 2 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics