पूछो उसकी चाह




गोधूलि लुढ़कती जैसे…
तस्वीर के पीछे छाया
करती आँखें जुगनू के प्यारे
लौट चली विलिन में

ऊपर से ताकता शशि भुजङ्ग
जुन्हाई करूँ या तिमिर में हम
श्याम गगन – सी हो कालिख राख
कहाँ धूल – सी ज्योति विशाल

क्लेश – सी मानव , पूछो उसकी चाह
बन बैठा अश्रु से धोता दिव
धार बन रचाती जलद मीन को
क्या भला कान्ति टर – टर तृषित ?

अकिञ्चन पङ्क्त चहुँओर क्यों विस्तीर्ण ?
दुर्लंध्य असीम क्या धुँधुआते क्यों ?
प्रतिबिम्ब भी नहीं तीक्ष्ण त्याज्य को
सुषुप्त है यह या जाग्रत नहीं कबसे ?

चिन्मय चिर नहीं चेतन कहाँ से ?
कौन दे इसे शक्ति विरक्त झिलमिल ?
यह देह नहीं , बिकने का सार !
मशक्कत मेरी भूख से तड़पन क्यों ?

यह तस्वीर के मजहब पूछो जरा…
गोरा – काला नहीं , क्या जाति तेरा ?
उँच – नीच अपृश्य नहीं , मुफलिस हूँ मै
चिर नहीं मसान में भव से निष्प्रभ

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