वितान
ऐ बचपन लौट आ नव्य वसन्त में
क्यों रूठ गए कहाँ चले गए तू ?
क्यों रुलाते मुझे इस सरोवर में ? बोलो !
मैं हूँ बिखरा निर्विकार दिगम्बर में
स्वप्निल चन्द्रवदन - सी स्मृति के
जागृत क्षणिक विकल तरुवर
विहग अञ्शु क्रान्ति में विप्लव
हयात कौतुक भी ध्वज में पला
दीवाने थी रैन भोर - सी तरणि
प्रज्ज्वलित हो चला अनागत में
बन बैठा तन तरुवर में दामिनी
आशुग लहरी कलित अलङ्गित
निर्झरिणी प्लव कल - कल कलित
बह चला मैं मीन अब्धि धार
अपरिचित सी हूँ इस कगारे वसन्त
व्यथा मेरी उर में बिलखती क्रन्दन
तन्हां - सी मैं विचलित श्रृङ्गार
अराअरी - सी नीड़ धड़कन दर्पण
मीठी सङ्गम दर्पण सौन्दर्य लिप्सा सरोवर
वितान मैं अब जीवन अङ्गार के
लूट गया हूँ मैं जीवन वसन्त से
खो गया मैं कण्टकाकीर्ण में लीन
प्रणय विष दञ्श निर्निमेष प्रहरी
मर्मभेदी उपाधी झल स्याही कलङ्क
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