खनिज एवं शैल
1. पृथ्वी विभिन्न तत्वों से बनी हुई है। पृथ्वी के संपूर्ण पर पर्पटी का लगभग 98% भाग 8 तत्वों जैसे ऑक्सीजन, सिलिकन, एलुमिनियम, लोहा, कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम तथा मैग्नीशियम से बना है।
2. पृथ्वी का शेष भाग टाइटेनियम, हाइड्रोजन, फास्फोरस, मैग्नीज, सल्फर, कार्बन, निकिल एवं अन्य पदार्थों से बना है।
भूपर्पटी पर पाए जाने वाले तत्व प्रायः अलग-अलग नहीं मिलते बल्कि सामान्यतः ये दूसरे तत्वों के साथ मिलकर विभिन्न पदार्थ का निर्माण करते हैं। इन पदार्थों को खनिज कहा जाता है।
खनिज :- (a) खनिज एक ऐसा प्राकृतिक कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्व है जिसमें एक क्रमबद्ध परमाणविक संरचना निश्चित रासायनिक संघटन तथााा भौतिक गुणधर्म होते हैं।
खनिज का निर्माण दो या दो से अधिक तत्वों से मिलकर होता है। लेकिन, कभी-कभी सल्फर, तांबा, चांदी, स्वर्ण, ग्रेफाइट जैसे एक तत्व खनिज भी पाए जाते हैं।
भूपर्पटी पर कम से कम दो हजार प्रकार के खनिज पहचाना गया है।
पृथ्वी के आंतरिक भाग में पाए जाने वाला मैग्मा ही सभी खनिजों का मूल स्रोत है। इस मैग्मा के ठंडे होने पर खनिजों के क्रिस्टल बनने लगते हैं और इस प्रक्रियाा में जैसे-जैसे मैग्मा ठंडा होकर ठोस शैल बनता है, खनिजों की क्रमबद्ध श्रृंखला का निर्माण होने लगता है। कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस जैैसे खनिज कार्बनिक पदार्थ हैैं तथा यह क्रमशः ठोस, तरल एवं गैस रूप में पाए जाते हैं।
भौतिक विशेषताओं और स्वभाव के आधार पर प्रमुख खनिजों की संक्षिप्त जानकारी :-
भौतिक विशेषताएं
१. क्रिस्टल का बाहरी रूप : अनु की आंतरिक व्यवस्था द्वारा तय होती है : घनाकार, अष्टभुजाकार , षट्भुजाकार प्रिज्म आदि
२. विदलन -सापेक्षिक रूप से समतल सतह बनाने के लिए निश्चित दिशा में टूटने की प्रवृत्ति;
अनुुओं की आंतरिक व्यवस्था का परिणाम;
एक या कई दिशा में एक दूसरे से कोई भी कोण बनाकर टूट सकते हैं।
३. विभंजन - अणुओं की आंतरिक व्यवस्था इतनी जटिल होती है कि अणुओं का कोई तल नहीं होता है; क्रिस्टल विदलन ताले के अनुसार नहीं बल्कि अनियमित रूप से टूटता है।
४. चमक - रंग के बिना किसी पदार्थ की चमक ; प्रत्येक खनिज की अपनी चमक होती है जैसे - मैटेलिक, रेशमी, ग्लासी आदि।
५. रंग - कुछ खनिजों के रंग उन्ही परमाण्विक संरचना से निर्धारित होते हैं। जैसे - मैलाकाइट,एजुराइट,कैल्सोपाइराइट आदि तथा कुछ खनिजों में अशुद्धियां के कारण रंग आते हैं । उदाहरण के लिए अशुद्धियों केे कारण क्वार्ट्ज़ का रंग श्वेत, हरा, लाल या पीला हो सकता है।
६. धारियां - किसी भी खनिज के पीसने के बाद बने पाउडर का रंग खनिज के रंग का या किसी अन्य रंग का हो सकता है -मेलाकाइट का रंग हरा होता है और उस पर धारियां भी हरी होती है, फ्लोराइड का रंग बैंगनी या हरा होता है ,जबकि इस पर श्वेत धारियां होती हैं।
७. पारदर्शिता -
पारदर्शी : प्रकाश की किरणें इस प्रकार आरपार जाती हैं, कि वस्तु सीधी देखी जा सकती है ;
पारभासी : प्रकाश किरणे आरपार होती है , लेकिन उनके विसरित हो जाने के कारण वस्तु देखी नहीं जा सकती;
अपारदर्शी : प्रकाश किरणे तनिक भी आरपार नहीं होंगी।
८. संरचना -
प्रत्येक क्रिस्टल की विशेेष व्यवस्था;
महीन मध्यम अथवा खुरदरे पिसे हुए;
तंतुयुक्त - पृथक करने योग्य, अपसारी,विकरणकारी।
९. कठोरता -
सापेक्षिक प्रतिरोध का चिन्हत होना;
दस चुने हुए खनिजों में से दस तक की श्रेणी में कठोरता मापना।
ये खनिज हैं ंं :-
1. टैल्क 6. फेल्डस्पर
2. जिप्सम 7. क्वार्ट्ज
3. कैल्साइट 8. टोपाज
4. फ्लोराइड 9. कोरंडम
5. ऐपेटाइट 10. हीरा
९०. आपेक्षिक भार - दी गई वस्तु का भार तथा बराबर आयतन के पानी का भार का अनुपात;
हवा एवं पानी में वस्तु का भार लेकर इन दोनों के अंतर से हवा में लिए गए भार से भाग दें।
कुछ प्रमुख खनिज तथा उनकी विशेषताएं
फेल्डस्पर
1. सिलिकॉन तथा ऑक्सीजन सभी फेल्डेस्परो में उपस्थित होते हैं जबकि सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, एलूमिनियम आदि तत्व भिन्न-भिन्न फेल्डस्पर में शामिल हैं।
2. पृथ्वी की पर्पट्टी का आधा भाग फेल्डस्पर से बना है। इसका रंग हल्का क्रीम से हल्का गुलाबी तक होता है।
3. चीनी मिट्टी के बर्तन तथा कांच बनाने में इसका उपयोग होता ह
क्वार्ट्ज़
1. यह रेत एवं ग्रेनाइट का प्रमुख घटक है ।इसमें सिलिका होता है।
2. यह एक कठोर खनिज है तथा पानी में सर्वथा अघुलनशील होता है या श्वेत या रंगहीन होता है तथा इसका उपयोग रेडियो एवं राडार में होता है।
3. ग्रेनाइट का यह एक महत्वपूर्ण घटक है।
पाइरॉक्सीन
1. कैल्शियम एल्यूमीनियम मैग्नीशियम आयरन तथा सिलिका इसमें शामिल है।
2. पृथ्वी की भू-पृष्ठ का 10% हिस्सा पाईरॉक्सीन से बना है ।
3. सामान्यतः उल्का पिंड में पाया जाता है।
4. इसका रंग हरा अथवा काला होता है।
एम्पीबोल
1. एम्पीबोल के प्रमुख तत्व एलूमिनियम, कैल्शियम, सिलिका, लौह, मैग्नीशियम है ।
2. इनके पृथ्वी के भू पृष्ठ का 7% भाग निर्मित है ।
3. यह हरे एवं काले रंग का होता है तथा इसका उपयोग 4. एस्बेस्टस के उद्योग में होता है । हॉर्नब्लेन्ड भी एम्पीबोल का एक प्रकार है।
माइका
1. इसमें पोटैशियम, एल्यूमीनियम, मैग्नीशियम, लौह, सिलिका आदि निहित हैं।
2. पृथ्वी की पर्पट्टी में इसका 4% अंश होता है ।
3. यह सामान्यतः आग्नेह एवं रूपांतरित शैलो में पाए जाते हैं।
4. विद्युत उपकरणों में इनका उपयोग होता है।
ऑलिवीन
1. मैग्नीशियम, लौह तथा सिलिका ऑलिवीन इनके प्रमुख तत्व होते ईहैं।
2. इनका उपयोग आभूषणों में होता है।
3. यह सामान्यतः हरे रंग के क्रिस्टल होते हैं। जो प्रायः बेसाल्टिक शैलों में पाए जाते हैं।
4. तीन प्रमुख खनिजों के अतिरिक्त शैलों में क्लोराइड, कैल्साइट, मैग्नेटाइट, हेमेटाइट, बॉक्साइट तथा बैराइट
जैसी अन्य खनिज भी कुछ मात्रा में उपस्थित होते हैं।
धात्विक खनिज
इनमें धातु तत्व होते हैं तथा इनको 3 प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है :-
1. बहुमूल्य धातु :-स्वर्ण, चांदी, प्लैटिनम आदि
2. लौह धातु :- लौह एवं स्टील के निर्माण के लिए लोहे में मिलाए जाने वाली अन्य धातुएं।
3. अलौकिक धातु :-इनमें ताम्र, सीसा, जिंक, टिन एलूमिनियम आदि धातु शामिल होते हैं।
अधात्विक खनिज
1. इनमें धातु के अंश उपस्थित नहीं होते हैं।
2. गंधक, फास्फेट तथा नाइट्रेट अधात्विक खनिज है। 3. सीमेंट अधात्विक खनिजों का मिश्रण है।
शैलें
1. पृथ्वी की पर्पट्टी शैलों से बनी है। शैल का निर्माण एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर होता है।
2. शैल कठोर या नरम तथा विभिन्न रंगों की हो सकती है।
3. जैसे ग्रेनाइट, कठोर तथा शैलखड़ी नरम है। गैब्रो काला तथा क्वार्टजाइट दूधिया श्वेत हो सकता है।
4. शैलों में घटकों का कोई निश्चित संगठन नहीं होता है। 5. शैलो में सामान्यतः पाए जाने वाले खनिज पदार्थ फेल्डस्पर तथा क्वार्टर्स है।
6. शैलो के विभिन्न प्रकार हैं, जिनको उनकी निर्माण पद्धति के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया गया है :-
1. आग्नेय शैल मैग्मा तथा लावा से घनीभूत,
2. अवसादी शैल बहिर्जनित प्रक्रियाओं के द्वारा शैलों के अंशों की निक्षेपण का परिणाम तथा
3. कायांतरित शैल उपस्थित शैलों में पुनर्क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया से निर्मित।
आग्नेय शैल
1. आग्नेय शैलों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक भाग के मैग्मा एवं लावा से होता है, इनको प्राथमिक शैल भी कहते हैं।
2. मैग्मा के ठंडे होकर घनीभूत हो जाने पर आग्नेह शैलों का निर्माण होता है।
3. लैटिन भाषा के इग्निस शब्द से बना है जिसका अर्थ है अग्नि होता है।
4. जब अपनी ऊपरगामी गति में मैग्मा ठंडा होकर ठोस बन जाता है तो यह आग्नेह शैल कहलाता है।
5. ठंडा तथा ठोस बनने की प्रक्रिया पृथ्वी की पर्पटी या पृथ्वी की सतह पर हो सकती है।
6.आग्नेह शैलों का वर्गीकरण इनकी बनावट के आधार पर किया गया है।
7. इसकी बनावट के कणों की आकार एवं व्यवस्था वह पदार्थ की भौतिक अवस्था पर निर्भर करती है।
8. यदि पिघले हुए पदार्थ धीरे-धीरे गहराई तक ठंडे होते हैं, तो खनिज के कण पर्याप्त बड़े हो सकते हैं ।
9. सतह पर हुई आकस्मिक शीतलता के कारण छोटे एवं चिकने कण बनते हैं।
10. शीतलता की मध्यम परिस्थितियां होने पर आग्नेय शैल को बनाने वाले कण मध्यम आकार के हो सकते हैं। 11. ग्रेनाइट, गैब्रो, पैग्मैटाइट, बेसाल्ट, ज्वालामुखीय ब्रेशिया तथा टफ़ आग्नेय शैल के कुछ उदाहरण है।
अवसादी शैल
1. अवसादी शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द सेडिमेंट्स से हुई है, जिसका अर्थ है, व्यवस्थित होना ।2. पृथ्वी की सतह की शैले (आग्नेय, अवसादी एवं कायांतरित) अपक्षयकारी कारकों के प्रति अनावृत होती है, जो विभिन्न प्रकार के विखंडों में विभाजित होती हैं ।3. ऐसे उपखंड का विभिन्न बहिर्जनित कारकों के द्वारा संवहन एवं निक्षेप होता है।
4. सघनता के द्वारा संचित पदार्थ शैलों में परिणत हो जाते हैं यह प्रक्रिया शिलीभवन कहलाती है।
5. बहुत सी अवसादी शैलों मे निक्षेपित परते शिलभवन के बाद भी अपनी विशेषताएं बनाए रखती हैं।
6. इसी कारणवश बालूकाश्म, शैल जैसी अवसादी शैल में विविध सांद्रता वाली अनेक शब्दों सतहें होती हैं।
निर्माण पद्धति के आधार पर अवसादी शैल का वर्गीकरण तीन प्रमुख समूह में किया गया है :-
1. यांत्रिक रूप से निर्मित उदाहरण स्वरूप बालूकाश्म,पिंडशिला, चूना प्रस्तर,शेल, विमृदा आदि
2. कार्बनिक रूप से निर्मित उदाहरणस्वरूप गीज़राइट, खड़िया, चूना पत्थर, कोयला आदि
3. रासायनिक रूप से निर्मित उदाहरणस्वरूप श्रृंग, प्रस्तर, चूना पत्थर, हेलाइट, पोटाश आदि।
कायांतरित शैल
कायांतरित का अर्थ स्वरूप में परिवर्तन दाव, आयतन, एवं तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरुप इन स्थलों का निर्माण होता है।
1. यह शैले दाव आयतन तथा तापमान में परिवर्तन के द्वारा निर्मित होती हैं।
2. जब विवर्तनिक प्रक्रिया के कारण पहले निचले स्तर की और बलपूर्वक खिसक जाती हैं, या जब भूपृष्ठ से उठता पिघला हुआ मैग्मा भू पृष्ठीय शैलों के संपर्क में आता है या जब ऊपरी शैले के कारण निचली शैलों पर अत्यधिक दाब पड़ता है तब कायांतरण का होता है ।
3. कायांतरण वह प्रक्रिया है, जिसमें समेकित शैलों में पुनः क्रिस्टलीकरणहोता है तथा वास्तविक शैलो में पदार्थ पुनः संगठित हो जाते हैं।
4. बिना किसी विशेष रासायनिक परिवर्तन के, टूटने एवं पीसने के कारण वास्तविक शैलों में यांत्रिक व्यवधान व्यवधान एंव उनका पुनः संगठित होना गतिशील कायांतरित कहलाता है।
5. उष्मीय कायंतरण के कारण शैलों के पदार्थों में रासायनिक परिवर्तन एवं पुनः क्रिस्टलीकरण होता है।
6. उष्मीय कायांतरण के दो प्रकार होते हैं :- संपर्क कायांतरण एवं प्रादेशिक कायांतरण।
7. संपर्क रूपांतरण शैलें गर्म, ऊपर आते हुए मैग्मा एवं लावा के संपर्क में आती हैं, तथा उच्च तापमान के शैल के पदार्थों का पुणे क्रिस्टलीकरण होता है।
8. अक्सर शैलों में मैग्मा अथवा लावा के योग से नए पदार्थ उत्पन्न होते हैं।
9. प्रादेशिक कायांतरण में उच्च तापमान अथवा दवाब अथवा इन दोनों के कारण शैलों में विवर्तनिक दबाव के कारण विकृतियां होती हैं।
10. जिससे शैलों में पुनः क्रिस्टलीकरण होता है। कायांतरण की प्रक्रिया में शैलों के कुछ कण या खनिज सतहो या रेखाओं के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं ।
11. कायांतरित शैलो में खनिज अथवा कणों की इस व्यवस्था को पत्रण या रेखांकन कहते हैं।
12. कभी-कभी या विभिन्न समूह के कण पतली से मोटी सतह में इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं, कि वे हल्के एवं गहरे रंगों की दिखाई देते हैं।
13. कायांतरित शैलो में ऐसे संरचनाओं को बैडिंग कहते हैं तथा बेडिंग प्रदर्शित करने वाले शैलों को बेंडेड शैलैं कहते हैं।
14. कायांतरित होने वाली वास्तविक शैलों पर ही कायांतरित शैलो की प्रकार निर्भर करते हैं।
15. कायांतरित शैल दो प्रमुख भागों में वर्गीकृत की जा सकती है :- पत्रित शैल अथवा अपत्रित शैल। पट्टीताश्मीय, ग्रेनाइट, साइनाइट, स्लेट, शिस्ट, संगमरमर क्वार्टज आदि कायांतरित शैलो के कुछ उदाहरण है।
शैली चक्र
1. शैलें अपनी मूल रूप में अधिक समय तक नहीं रहती है, बल्कि इनमें परिवर्तन होते रहते हैं। शैली चक्र एवं सतत प्रक्रिया होती है, जिसमें पुरानी शैली परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती है।
2. आग्नेय शैले प्राथमिक शैल हैं तथा अन्य (अवसादी एवं कायांतरित) शैल इन प्राथमिक शैलों में परिवर्तित किया जा सकता है।
3. आग्नेय एवं कायांतरित शैलो मैं परिवर्तित किया जा सकता है।
4. आग्नेय एवं कायांतरित शैलो से प्राप्त अंशों से अवसादी शैल का निर्माण होता है।
5. अवसादी शैल अपखंडो में परिवर्तित हो सकती हैं तथा यह अपखंड अवसादी शैल के निर्माण का एक स्रोत हो सकते हैं।
6. निर्मित भूपृष्ठीय शैलें (आग्नेय, कायांतरित एवं अवसादी) प्रत्यावर्तन के द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग में नीचे की ओर जा सकती हैं, (भूपृष्ठीय पत्रक आंशिक अथवा पूर्ण भाग संस्करण पत्रक के क्षेत्र में अन्य पत्रक नीचे चले जाते हैं) तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान बढ़ने के कारण ये ही पिघलकर मैग्मा में परिवर्तित हो जाते हैं, जो आग्नेय शैलों के मूल स्रोत हैं।
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