मणिपुर की बेटी ईरोन शर्मिला




सुनता    था  ,   पढ़ता   था 
महाभारत      की      कथा 
मंगलूपुर    की   बेटी    थी 
चित्रांगना       नाम      था 
बेटा    उसका    राजा   था 
पिता   को   ललकारा   था 
गांडीवधारी     अर्जुन   जो
हस्तिनापुर का युवराज था ।


मंगलूपुर   की   धरती  को 
पांडव    ने  प्रणाम  किया 
देख    वीरता     पुत्र   की
प्रसन्नचित्त   प्रस्थान किया 
मंगलूपुर   बना    मणिपुर 
दिल्ली है आज हस्तिनापुर
इतिहास   दुहरा   रहा   है 
मणिपुर ललकार  रहा  है ।


पांडव की सेना लौट गई थी 
आज चप्पे-चप्पे पर सेना है 
काले कानून के  आतंक  से 
मणिपुर    कराह   रहा  है ।
नारियों    ने    न्यूड   होकर 
निकाला     लंबा     जुलूस 
बलात्कारियों को दी चुनौती
पर दिल्ली बनी रही खामोश
कवियत्री    इरोन    शर्मिला
उससे    देखा    नहीं   गया
वह   बेटी  थी  मणिपुर  की 
मणिपुर  को   उसने    देखा 
बंदूक    की   नोक   पर   है 
बिछी  थी  लाश  निर्दोषों की 
दुर्दशा हो  रही  नारियों  की ।


उसने     उठा     लिया    मशाल
चारों      ओर     था    अंधकार 
आगे - आगे   चल    पड़ी   वह 
मिटाने     को    घोर    अंधकार 
दशक    बीत   गए    फिर    भी 
वह    बैठी    है    अनशन    पर 
कोई   हंगामा   नहीं   फिर    भी 
अधिक   है   वह    अहिंसा   पर 
उसकी  रक्षा  पर  व्यय  बढ़  रहा 
वजन   उसका   घट    रहा   है ।
अंधेरा    को     ललकारते    हुए
मशाल  उसका   जल    रहा    है 
गूंज    रही     उसकी    आवाज 
दिल्ली    को     जगना     होगा 
अब  वह  बेटी  यह   भारत  की
काला   कानून    मिटाना   होगा 
आजेश    रंगकर्मी     पूना   का 
आवाज    सुनी      घरों     की
घर - घर   सुना   रहा    कहानी
वह   आत्मा   के   दरकने   की


शर्मिला  को    झुकाने   में 
खर्च   हुए  चालिस  करोड़ 
छीज  रहा  है  उसका  तन
पर फौलादी है उसका मन ।


अर्द्धशतक   से  अधिक  हुआ 
काला कानून का बादल  छाया 
एक  दशक  से  अधिक  हुआ 
शर्मिला  तारा  नभ  में  चमका 


तारा    अब  सूरज   बनकर
 नभ  में  चमक     रहा   है 
ऊर्जा पाकर  मानवाधिकार 
आयोग   हुंकार   रहा   है ।

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