दुनिया एक बाजार है ( कविता )


शास्त्र कहता है दुनिया एक परिवार है
 जमाना कहता है दुनिया एक बाजार है
 कहो जी, सुनो जी क्या लोगे क्या दोगे ?
खरीदना और बेचना जीवन का व्यापार है ।


विद्या, विनय, शील,गीत और संगीत 
किस्सा कहानी सब यहां बिकाऊ है 
यहां मुनाफे पर सब कुछ तौला जाता है 
लक्ष्मी के बिना सरस्वती बेकार है ।


लाभ, शुभ, हानि अशुभ का इश्तहार है
 अपने ही बाजार में हम खरीदार हैं 
अपने ही घर में हम किराएदार हैं
 अपने ही आसमान में टूटता तारा हैं ।


धीरज और साधना का ज्ञान नहीं है
 सबकुछ फटाफट और तुरंत तैयार है
 वस्तु इस्तेमाल करो और फेंक दो 
हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा है


 रेडी टू सेल, रेडी टू ईट, सब कुछ रेडीमेड है
चट मंगनी पट विवाह यहां का खेल है
 समय पर करो भुगतान जिंदगी होगी 
आसान पैसा ही है मजहब, वतन और जवान।


पैसा ही है मंदिर, मस्जिद, चर्च और भगवान 
देश ही नहीं पूरी धरती एक बाजार है 
झूठ बोलना यहां का खुला व्यवहार है 
नकली असली और असली नकली है ।


 झूठा सच्चा और सच्चा झूठा है 
ठगना और मुनाफा कमाना जायज है 
सौदागरों का सबसे बड़ा दोस्त झूठ है
 करोबार का मूल मंत्र यहां झूठ है 


'सदा जीवन उच्च विचार' खोजो कहां
ईमानदारों पर लालच और ठाट-बाट का रंग है 
आज सब पर मुक्त का जादू चल गया है 
एक खरीदो, दो पाओ सिर पर चढ़कर बोल रहा है 


बाजार में धन लगा है धन बरस रहा है 
व्यापारी, कंपनी और दलाल का बहार है
 लोक के पास धन नहीं कुछ लोग मालामाल है
 लोकतंत्र से लोग गायब है केवल तंत्र बेहाल है ।


विश्व बैंक सर्वशक्तिमान सम्राट है 
सभी देशों के बैंक इसके रिश्तेदार हैं 
इसके हाथ में देश जहान का बागडोर है 
देशी और विदेशी व्यापार एक हैं ।


 नीति, न्याय, विधान के गलीचे पर
 स्वार्थ - सुंदरी नाच रही है 
ईमान और सच्चाई के बीच सोने का हिरन है  
 हंस चुन रहा दाना , कौआ मोती खा रहा है ।

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