गर्मी
जल रहा है आसमान
धरती तप रही है
गर्म हवाएं चल रहीं
पानी चाय बन रही है
चिलचिलाती धूप में
आग बरस रही है
जल रहा है सारा बदन
हलख सूख रहे हैं
हाट बाजार गर्म हो गया
शासक बेशर्म हो गया
सब्जी आंख मार रही है
थाली से दाल गायब हो गयी
चुनाव की तीखी किरणें
शोले बरसा रही हैं
नेताओं के बदन जल रहे
कलेजे की धड़कन ने बढ़ गई है
ईर्ष्या - द्वेष की अग्नि में
अपराधी झुलस रहे हैं
हत्याओं की बाढ़ आ गई
सुशासन की धज्जियां उड़ रही हैं
देख बिजली की आंखमिचौनी
जनता व्याकुल हो गयी है
मुरझा गए शांति के फूल
और अराजकता की धूल उड़ रही है
गर्मी के मारे बच्चे मर रहे हैं
भ्रष्टाचार से जनता खौल रही है
विशेष राज्य की मांग उठाकर
शासक पानी छीट रहे हैं
'आ रहा है मानसून' की आवाजें
ना जाने कब से आ रही है
पर प्रदूषण में भटक गया
जनता वियोग में मर रही हैं
अनगिनत आंखें लगी हैं
सब आसमान पर टिकी हैं
बादल घिर - घिर आते - जाते
आशा - निराशा में झूल रहे हैं
जब बादल घुंघट उठाएगा
तब वर्षा रानी नाचेगी
रिमझिम - रिमझिम बरसा पानी
मर जाएगी गर्मी की नानी
खेतों में पौधे लहलहा उठेंगे
सब ओर हरियाली छा जाएगी
टर्र - टर्र, झन - झन की तान सुन
दिल की कलियां खिल जाएगी
टिप्पणियाँ