छायाएं ( कविता )
दो गहन काली छायाएं
घेर लिए हैं मानव को
एक मिथकों पर खड़ा है
दूसरा सब्जबाग दिखाता है ।
यह अपने को दूत बताते
स्वप्न स्वर्ग लोक के
दोनों का रणक्षेत्र अलग हैं
पर दोस्ती है गजब की ।
बजाकर ढोल दुआई देते
शांति और अहिंसा की
पर लोगों को पागल बनाकर
धरती पर खून बहातें हैं ।
धर्म - देश की रक्षा खातिर
ये हत्या करते मानवता की
मानवता घुट-घुटकर मरती
पर दोनों जश्न मनाते हैं ।
एक स्वर्ग पाने ऊपर भेजते
दूसरा स्वर्ग नीचे लाते हैं
ईश्वर और देशभक्ति की
नशा पिलाकर भरमाते हैं ।
अंध राष्ट्रवाद के नाम पर
दो - दो विश्व महायुद्ध हुए
और धर्म के नाम पर
अनगिनत सिर कट गए ।
एक आतंक मचाता धरती पर
दूसरा तानाशाह पैदा करता है
मानव सिर काट - काट कर
दोनों अपना शोर्य दिखाते हैं ।
धर्म और राष्ट्र की कल्पना
सदा हिंसा पैदा करती हैं
जो भोगता भौतिक सुखों को
दूसरों को अध्यात्म पढ़ाता है ।
परिभाषा हमें बदलनी होगी
धर्म और राष्ट्र दोनों की
धर्मयुद्ध और राष्ट्रीययुद्ध
शब्दकोष से हटाओ दोनों को ।
जग में शांति लाने हेतु
मानवता का पाठ पढ़ाना है
घृणा और द्वेष के बदले
प्रेम की गंगा बहानी है ।
टिप्पणियाँ