जनता जाग रही है



उठ   रहा    है    तूफान
दुनिया   बदल  रही  है।
आया क्रांति का जमाना
जनता   जाग  रही   है।

याद करो अपनी  संस्कृति
गौरवशाली   इतिहास  है।
दूर करो  अपनी कमजोरी
अब गुलाम  नहीं रहना है।

विनाश के कगार पर
देश हमारा  खड़ा है।
गहराती  गरीबी अब
हमें  ललकार रही है।

दमन   की   चक्की   में   अब
जनता   पिसी   जा   रही   है।
महिला , दलित और आदिवासी
सबका    हाल      बेहाल    है।

बढ़ रहा  है  भ्रष्टाचार
काला धन बेशुमार है।
लूट  रहे  हैं  बेदर्दी  से
महंगाई  बेलगाम   हैं।

कठपुतली    हैं   नेतागण
डोरी पूंजीपति खींच रहे हैं
नाच  रही  सरकार  हमारी
नेता  हमारे  नाच  रहे   हैं।

मत  देने  का  अधिकार  मिला
जीने  का   अधिकार  नहीं  है।
उग    रहा   है     सूरज   लाल
क्रांति की लाली छिटक रही  है।

मंदी  की  काली  छाया  में
बेरोजगारी   बढ़  रही   है।
प्रबंध पर बहाली हो रही है
पेंशन    बंद   हो   रहा  है।

कंपनी   कर  रही  मनमानी
श्रम कानून तोड़े जा  रहे  हैं।
वेतन   में  हो  रही   कटौती
मजदूरों की छटनी हो रही है।

स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा
जनता को नहीं मिल रही है।
कुपोषण  की मार से  बच्चे
बेमौत   मारे   जा   रहे  हैं।

बदलाव   के   लिए    अब
नव जवान संघर्ष कर रहे हैं।
उठ रहे  हैं  देश  के  मजदूर
उठ रहे  गांव  के  किसान हैं।

एकता के सूत्र में बंधकर 
उठा रहे लाल निशान हैं।
उठ   रहा    है    तूफान
जनता   जाग   रही  है।

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