धर्म - ईश्वर

एक जमाना ऐसा भी था  
मानव  वन  में  रहते  थे 
कबीलों  में   बैठकर  वे 
आपस में लड़ते रहते थे 

अलग-अलग पिंड बने थे 
भूतों  की  पूजा होती  थी 
अपने - अपने पूर्वजों को 
वे  ईश्वर  माना  करते  थे 

विज्ञ  पुरुषों  ने  समझाया 
ईश्वर  एक   है  सब  मानो 
हम सब हैं संतान उन्हीं की 
आपस में लड़ना  बंद करो 

ईश्वर   प्रतीक   बन   गए 
अब  एकता और  प्रेम का 
शांति का  सागर  लहराया  
भाव भर गया भाईचारे का 

सभी कमाते बांटकर खाते 
कोई  नहीं  बैठा रहता  था 
कुछ  धूर्त्त  लोग  पैदा  हुए 
वे  जुगाड़  कर  खाने  लगे   

धूर्त्त  ने  आपस  में   मिलकर 
ईश्वर   को   तब  बांट   लिया 
अलग  -  अलग   धर्म   बना 
अलग डफली अलग राग बना 

ईश्वर प्रतीक बन  गए द्वेष  का
जग  ईर्ष्या - घृणा   फैल  गया 
मानव - मानव में रहा नहीं मेल 
खेलने लगे सब  खून का  खेल 

शुद्ध   स्वभाविक   आचरण 
हर   व्यक्ति   का   धर्म   था 
मानवीय  गुणों  का  विकास 
ही  तो   धर्म   कहलाता  था 

ईश्वर की सत्ता मिट गयी 
शीर्ष पर शैतान बैठ गया 
सूरज नभ में अस्त हुआ 
जग में अंधकार छा गया 

धर्म ऊपर उठ आकाश गया 
आडंबर धरती पर फैल गया 
अधर्मी  धर्मोपदेश   दे  रहा 
पापी  देखो  पुण्य बांट  रहा 

धर्म  में   जितनी   थी  वर्जना 
करते    उनकी     वे   अर्चना 
योग  सिखाते  फिरते जग को 
वह भोंकते हैं क्षणिक सुख को 

धनिक और शोषक वर्ग सभी 
कर   रहे    हैं   ईश्वरोपासना 
दलित   और    नारियों   को 
दे    रहे    हैं    वे    प्रताड़ना

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