लाल सूरज
डूब गया सूरज पश्चिम का
बैंकों में ताले लटक गए।
घना अंधकार फैला चहुंओर
पूंजी का जनाजा निकल गया।
बुझ गया प्रकाश पूंजीवाद का
दृष्टिहीन दिशाविहीन हो गया।
जैसे कोई नाव अनंत सागर में
पतवारहीन राह भूल, भटक गया।
दर्शक बन क्या देख रहे हो ?
जग प्रसव पीड़ा से गुजर रहा है।
तुम दर्शक ही नहीं स्नष्टा भी हो
नया विकल्प जन्म लेने वाला है।
अंधकार जितना घना होता है
प्रभात उतना ही निकट आता है ।
कार्यकर्ता ही। वह किरण पुंज है
जिससे नया सूरज जन्म लेता है।
वाम - कैडर जब एकजुट होकर
हाथों में मशाल उठा लेगा ।
विकास और क्रांति की लाली
पूरब क्षितिज पर फैले जायगी ।
वर्तमान भविष्य का निर्माण करेगा
अंधकार से आलोक में जाएगा ।
क्रांति की मशाल से ही अब
लाल सूरज पूरब में निकलेगा ।
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