परिचय अर्थशास्त्र क्लास 11th
1.2 अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएं
1.3 आर्थिक क्रियाकलापों का आयोजन
1.3.1 केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था
1.3.2 बाजार अर्थव्यवस्था
1.4 सकारात्मक तथा आदर्शक अर्थव्यवस्था
1.5 व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र
सामान्य अर्थव्यवस्था
1. समाज में लोगों को खाना, वस्त्र, घर, सड़क एवं रेल सेवाओं जैसे यातायात के साधनों डाक सेवाओं तथा चिकित्सकों-अध्यापकों जैसे बहुत सी वस्तुओं तथा सेवाओं को प्रतिदिन जीवन में आवश्यकता होती है।
2. समाज में किसी भी व्यक्ति के पास में सभी वस्तुएं नहीं होतीं, जिनकी उसे आवश्यकता होती है।
3. प्रत्येक व्यक्ति जितनी वस्तुओं या सेवाओं का उपभोग करना चाहता है उनमें से कुछ ही उसे उपलब्ध होती हैं।
4. समाज में लोग हर काम में पारंगत नहीं होते हैं। इस स्थिति में वह अपनी आय का कुछ हिस्सा अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में करती है।
5. हर व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों का उपयोग कर सकता है, अतः सब लोग मानते हैं कि व्यक्ति की आवश्यकताएं जितनी अधिक होती हैं उनकी पूर्ति के लिए उसके पास सीमित संसाधन नहीं होते।
6. वह परिवार अपने लिए उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं में से कुछ का चयन करने के लिए बाध्य हो जाता है वह अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं का त्याग करके ही वांछित वस्तुएं तथा सेवाएं अधिक मात्रा में प्राप्त कर सकता है। उदाहरणस्वरूप अगर कोई व्यक्ति अपनेे बच्चों के लिए उत्तम शिक्षा व्यवस्था करना चाहे तो उसे जीवन की कुछ विलासिताओं को त्यागना पड़ सकता है।
7. सभी को संसाधन की कमी का सामना करना पड़ता है और इसलिए प्रत्येक को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सीमित संसाधनों का उत्कृष्ट प्रयोग करना पड़ता है।
8. समाज को प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन में संलग्न रहता है तथा उसे ऐसे कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं से संयोजन की आवश्यकता होती है जिनमें से सभी उसके द्वारा उत्पादित नहीं होती।
9. किसी भी अर्थव्यवस्था में लोगों की सामूहिक आवश्यकताओं तथा उनके द्वारा किए गए उत्पादन के बीच सुसंगतता होनी चाहिए।
10. जिस प्रकार व्यक्ति के पास संसाधनों की कमी होती है उसी प्रकार समाज के लोगों को सामूहिक आवश्यकताओं की तुलना में भी समाज के पास उपलब्ध संसाधनों की कमी होती है। इस स्थिति में समाज
के लोगों की पसंद और नापसंद को ध्यान में रखते हुए समाज के पास उपलब्ध सीमित संसाधनों का विनिधान विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए करना पड़ेगा।
समाज के सामने मूल आर्थिक समस्याएं क्या है?
1. सीमित संसाधनोंं का विनिधान
2. वस्तुओं और सेवाओं के अंतिम मिश्रण का वितरण
वस्तुओं का क्या तात्पर्य है ?
वस्तुओं विशेष से अभिप्राय भौतिक मूर्त वस्तुओं, जिनका उपयोग लोगों की इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किए जाने से है।
सेवाओं का क्या तात्पर्य है ?
सेवाओं से हमें इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति से पूर्ण संतुष्टि प्राप्त होती है।
व्यक्ति विशेष का क्या तात्पर्य है ?
व्यक्ति विशेष से हमारा अभिप्राय अपना निर्णय लेने में सक्षम इकाई से है।यह निर्णय लेने में सक्षम इकाई कोई एक अकेला व्यक्ति अथवा परिवार समूह फर्म अथवा कोई अन्य संगठन हो सकता है।
अर्थशास्त्र में संसाधन का क्या तात्पर्य है ?
संसाधनों से हमारा अभिप्राय उन वस्तुओं तथा सेवाओं से है, जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करने में होता हैं। जैसे भूमि, श्रम, बाजार तथा मशीने इत्यादि।
अर्थशास्त्र में उत्पादन का क्या तात्पर्य है ?
समाज में उत्पादित सभी वस्तुओं तथा सेवाओं का उपयोग समाज के लोगों द्वारा किया जाता है तथा समाज के बाहर से कुछ भी प्राप्त होने की कोई संभावना नहीं है। लेकिन, वास्तव में यह सही नहीं है। तथापि यह सामान्य रूप से जो बात कही जा रही है, वह यह है कि वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन तथा उपभोग के बीच सुसंगतता का सिद्धांत किसी भी देश अथवा संपूर्ण विश्व पर लागू होता है।
अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएं
1. वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन विनिमय तथा उपभोग जीवन की आधारभूत आर्थिक गतिविधियों के अंतर्गत आते हैं। प्रत्येक समाज को इन आधारभूत आर्थिक क्रियाकलापों के दौरान संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है तथा संसाधनों की कमी चयन की समस्या को जन्म देती है।
अर्थव्यवस्था की समस्याएं क्या-क्या है ?
1. किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में ?
2. इन वस्तुओं का उत्पादन कैसे करते हैं ?
3. इन वस्तुओं का उत्पादन किसके लिए किया जाए ?
किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में ?
प्रत्येक समाज को निर्णय करना पड़ता है कि प्रत्येक संभावित वस्तुओं तथा सेवाओं में से किन-किन वस्तुओं और सेवाओं का वह कितना उत्पादन करेगा।
उदाहरण स्वरूप :- अधिक खाद्य पदार्थों, वस्तुओं या आवासों का निर्माण किया जाए अथवा विलासिता की वस्तुओं का अधिक उत्पादन किया जाए आदि।
इन वस्तुओं का उत्पादन कैसे करते हैं ?
प्रत्येक समाज को निर्णय करना पड़ता है कि विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं से उत्पादन करते समय किस किस वस्तु या सेवाओं में किस-किस संसाधन की कितनी मात्रा का उपयोग किया जाए।
उदाहरण स्वरूप :- 1. अधिक श्रम का उपयोग किया जाए।
2. अधिक मशीनों का उपयोग किया जाए।
इन वस्तुओं का उत्पादन किसके लिए किया जाए ?
अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं की कितनी मात्रा किसे प्राप्त होगी ?
2. अर्थव्यवस्था के उत्पाद को व्यक्ति विशेष के बीच किस प्रकार विभाजित किया जाना चाहिए ?
3. यह सुनिश्चित किया जाए अथवा नहीं कि अर्थव्यवस्था के सभी व्यक्तियों को उपभोग की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध हो।
अतः प्रत्येक अर्थव्यवस्था को इस समस्या का सामना करना पड़ता है कि विभिन्न संभावित वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए दुर्लभ संसाधनों का भी निर्धारण कैसे किया जाए और उन व्यक्तियों के बीच जो अर्थव्यवस्था के अंग हैं उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का वितरण किस प्रकार किया जाए।
अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएं क्या-क्या है ?
1. सीमित संसाधनों का विनिधान
2. अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का वितरण
सीमांत उत्पादन संभावना
1. जिस प्रकार व्यक्तियों के पास संसाधनों का अभाव होता है उस तरह कुल मिलाकर किसी अर्थव्यवस्था के संसाधन भी उस अर्थव्यवस्था में रहने वाले व्यक्तियों की सम्मिलित आवश्यकताओं की तुलना में सर्वदा सीमित होते हैं।
2. दुर्लभ संसाधनों के वैकल्पिक उपयोग होते हैं तथा प्रत्येक समाज को यह निर्णय करना पड़ता है कि वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए प्रत्येक संसाधन का कितनी मात्रा में उपयोग किया जाना है।
उत्पादन संभावना सेट
उपलब्ध संसाधनों की मात्रा तथा उपलब्ध प्रौद्योगिकी ज्ञान के द्वारा उत्पादित की जा सकने वाली सभी वस्तुओं तथा सेवाओं के सभी संभावित संयोगों के समूह को अर्थव्यवस्था का उत्पादन संभावना सेट कहते हैं।
यह वक्र कपास की किसी निश्चित मात्रा के बदले अनाज की अधिकतम संभावित उत्पादित मात्रा तथा अनाज के बदले कपास की मात्रा दर्शाता है इस वक्र को सीमांत उत्पादन संभावना कहते हैं।
अवसर लागत :-
एक वस्तु की कुछ अधिक मात्रा प्राप्त करने के बदले दूसरी वस्तु की कुछ मात्रा को छोड़ना पड़ता है। इसे वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने की अवसर लागत कहते हैं ।
बहुत सी उत्पादन संभावनाओं में से किसी एक का चयन करना ही अर्थव्यवस्था की एक केंद्रीय समस्या है।
अवसर लागत की संकल्पना व्यक्ति विशेष तथा समाज दोनों पर लागू होती है। यह संकल्पना अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा अर्थशास्त्र में व्यापक रूप से उपयोग में लायी जाती है। अर्थशास्त्र में इसके महत्व के कारण कभी-कभी अवसर लागत को आर्थिक लागत भी कहा जाता है।
आर्थिक क्रियाकलापों का आयोजन
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था
1. वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन विनिमय तथा उपभोग से संबंध सभी महत्वपूर्ण निर्णय सरकार द्वारा किये जाते हैं।
2. केंद्रीयकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था समाज के लाभ के उद्देश्य से वस्तुओं तथा सेवाओं के अंतिम मिश्रण का न्यायोचित हिस्सा देने का कार्य कर सकती हैं।
3. संयुक्त राज्य अमेरिका एवं चीन केंद्रीयकृत अर्थव्यवस्था है।
बाजार अर्थव्यवस्था
1. सभी आर्थिक क्रियाकलापों का निर्धारण बाजार की स्थिति के अनुसार होता है।
2. बाजार वह व्यवस्था है जिसमें लोग निर्बाध रूप से वस्तुओं को खरीदने और विक्रय करने का काम कर सकते हैं।
3. बाजार व्यवस्था में प्रत्येक वस्तु तथा सेवा की एकता कीमत होती है (जिस पर क्रेता एवं विक्रेता में सहमति होती है)।
4. बाजार अर्थव्यवस्था में उत्पादक अपने लाभ के उद्देश्य से किसी वस्तुओं का उत्पादन करता है।
5. बजाज तंत्र में उन केंद्रीय समस्याओं का समाधान किस वस्तु का और किस मात्रा में उत्पादन किया जाना है , कीमत के इन्हीं संकेतों द्वारा व आर्थिक क्रियाकलापों के समन्वय से होता है।
6. अगर क्रेता किसी वस्तु की अधिक मात्रा की मांग करते हैं, तो उस वस्तु की कीमत में वृद्धि हो जाएगी।
7. बाजार के मांग के अनुसार उत्पादक उसी वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिससे उसे लाभ की प्राप्ति हो।
8. जर्मनी जैसा बाजार अर्थव्यवस्था के अंतर्गत आते हैं।
मिश्रित अर्थव्यवस्था
1. इस अर्थव्यवस्था में सरकार द्वारा महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं तथा आर्थिक क्रियाकलाप प्राय: बाजार द्वारा ही किए जाते हैं।
2. इसमें यह महत्वपूर्ण है कि आर्थिक क्रियाकलापों के दिशा के निर्धारण में सरकार की भूमिका कितनी अधिक है।
3. भारत की अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जिसमें यहां के सरकार और बाजार व्यवस्था मे समन्वय होता है।
सकारात्मक तथा आदर्शक अर्थशास्त्र
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण
1. किस क्रिया विधि के अंतर्गत होने वाले कार्यों का पता लगाने का प्रयास करते हैं अथवा उसका मूल्यांकन करते हैं।
2. विभिन्न क्रियाविधियां किस प्रकार कार्य करती है, यह अध्ययन करने का प्रयास करते हैं।
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण
किसी भी क्रियाविधि में यह समझने का प्रयास करते हैं कि यह विधियां हमारे अनुकूल है भी या नहीं।
सकारात्मक तथा आदर्शक विषय केंद्रीय आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में निहित है, वे सकारात्मक और आदर्शक पहलू या प्रश्न है।
जो एक दूसरे से अत्यंत निकटता से संबंधित हैं तथा इनमें से किसी एक की पूर्णतः उपेक्षा करके अथवा अलग करके दूसरे को ठीक से समझ पाना संभव नहीं होता।
व्यष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र
व्यष्टि अर्थशास्त्र
1. बाजार में उपलब्ध विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न आर्थिक अभिकर्ताओं के व्यवहार का अध्ययन करके यह जानने का प्रयास करते हैं कि इन बाजारों में व्यक्तियों की अंतः क्रिया द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्राएं और कीमतें किस प्रकार निर्धारित होती है।
2. व्यष्टि अर्थशास्त्र में विभिन्न बाजारों का अध्ययन किया जाता है।
3.एक वस्तु के व्यक्तिगत उपभोक्ता तथा उत्पादकों के व्यवहार का अध्ययन करते है, किसी वस्तु का बाजार में कीमत तथा मात्रा का निर्धारण किस प्रकार होता है।
समष्टि अर्थशास्त्र
1. समष्टि अर्थशास्त्र में कुल निर्गत रोजगार तथा समग्र कीमत स्तर आदि समग्र उपायों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए पूरे अर्थव्यवस्था को समझने का प्रयास करते हैं।
2. समग्र उपायों के स्तर किस प्रकार निर्धारित होते हैं तथा उनमें समय के साथ परिवर्तन किस प्रकार आता है।
3. समष्टि अर्थशास्त्र में हम अर्थव्यवस्था के कार्य निष्पादन की समग्र अथवा समष्टिगत उपायों के व्यवहार का अध्ययन करने का प्रयास करते हैं।
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