आजादी का जश्न ( कविता )
मुक्त है धरती मुक्त गगन है
सब और मुक्त हवाएं बहती हैं
धरती पर मुक्त सब मानव हैं
पक्षी मुक्त गगन में गाती है
मुक्ति का गीत हम गाएं
आजादी का जश्न मनाए ।
ईश्वर प्रतीक थे तानाशाहों का
धर्म प्रतीक था नफरत का
ईश्वर - धर्म मुक्त मानव हुआ
प्रदूषण मुक्त आकाश हुआ
मानवता का परचम फहराएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
धर्म - पंथ , संप्रदाय सब
नष्ट हुए इस धरती पर
ऊंच - नीच का भेद मिटा
छाया प्रेम मानव दिल पर
प्रेम का पाठ सब को पढ़ाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
बटं गया धन और धरती
गरीबी भूखमरी मिट गयी
मंदिर - मस्जिद गिरिजा की
दीवारें हड़हड़ा कर गिर गयी
हम मानव मंदिर बनाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
मिट गयी सीमाएं राष्ट्रों की
अब न कभी कोई युद्ध होगा
मिट गए धार्मिक उन्माद सभी
अब न कभी दंगा - आतंक होगा
विश्व की नयी सरकार बनाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
गरीबी मिटी नक्सली मिटा
राजशाही गया भगवान गया
मिट गए सामंत देवता गए
इमाम मिटा पैगंबर गया
सुखमय जीवन के गीत गाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
मिट गया सब लोभ पुण्य का
स्वर्ग नरक का खेल मिटा
धरती निष्पाप बन गयी
अंधविश्वास का भ्रम मिटा
घृणा को कब्र में दफनाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
इंटरनेट का जुआ बंद हुआ
धन संचय पर रोक लगा
रोशनी आती हवा बहती है
उत्पादन का सम वितरण होगा
समता का भाव वितरण होगा
समता का भाव सम में फैलाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
वेदकाल से नारी गुलाम थी
सर्वप्रथम वह स्वतंत्र हुई
सिंदूर - चूड़ी के बंधन से
मुक्त विश्व की नारी हुई
बंधन मुक्त दिवस मनाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
पति - पत्नी का नाम मिटा
अब पार्टनर कहलाते हैं
पुनर्जन्म का भ्रम मिटा
अब शादी एक समझौता है
हम नारी मुक्ति दिवस मनाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
इज्जत की पहाड़ नहीं ढ़ोती
पुरुष पूजा से मुक्ति मिली
नग्नता को दे तिलांजलि
बुर्का उतार फेंकती नारी
समानता के गीत हम गाएं
आजादी का जश्न मनाएं
न कोई अमीर - गरीब रहेगा
सबके माथे पर छत होगा
स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त मिलेगी
शिक्षित सारा समाज बनेगा
सब मिलकर कमाएं सभी खाएं
आजादी का जश्न मनाएं ।
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