विवाह गीत


हाथी कूदे घोड़ा कूदे ,
बाजे ढम - ढम ढोल ।
सखियन सब संगीत गावे ,
मोरा मन डावांडोल ।
अंखियां आगे अंधेरा ,
सूझे ओर न छोर ।
 धक - धक करे करेजवा ,
मोरा नयना ढेर लोर ।
पंडित मंतर पढ़ी - पढी के
 देलखिन गांठ दोनों जोड़ ।
 सात फेरा होते-होते ,
 सखि भय गेलै भोर ।


  मैया हम तोरा घर के कुत्तिया ,
 हमरा   देलहो  तो  बेलाय ।
 बचपन      यहां      बीतलै ,
 कैसे  छोड़बे  बाप - बाय ?
 अखियां  में  भरी-भरी लोर ,
 मैया   लेलकै  अंग   लगाय ।
 जग  के  यही  रीति  गे  बेटी ,
 भैया      के    देबौ    पठाय ।
 सीता - सावित्री  बनी रहियो ,
 नै  तो   होतौ   जग   हंसाय ।
  बाबा   की   इज्जत   रखियो ,
 दिहो      पतिया      भेजाय ।
मैया  हम तोरा घर के कुत्तिया
 हमरा    देलहो   तो  बेलाय ।


बेटी    बाप   के   शर्त  पर ,
राम    कैलखिन    विवाह ।
दशरथ  दौड़ल अऐलखीन ,
संगे - संगे  राम के   भाय ।
हमरा  बाबा  के  तिलक में ,
 देलखिन   खेतवा    बेचाय ।
सावित्री   अपना  मन   से ,
योग्य  वर  चुनी   लेलखिन ।
हमरा    उपरो     मन    से ,
कोई  न पूछे  अलै गे माय ।
बेटी जींस  पहन  नाचतैय ,
हम  बैठबै  घोघा   ताऽन ।
 ताली दोनों हाथ से  बजै छै ,
 हम  कैसे   सहबै  गे  माय ।
मैया हम तोरा घर के कुत्तिया
 हमरा   देलहो   तो  बेलाय ।

 

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