बीमारी ( कविता )
जब से हाथ में रक्षा बंधन बांधा है
देखो डॉक्टर तब से बीमार है
हाथ उठाता, मुट्ठी बांधता, दांत पिसता
क्रोध में रह- रहकर फुफकार रहा है ।
डॉक्टर - इसको श्रेष्ठाता की बीमारी है
घृणा का जहर खून में दौड़ रहा है
यह अपने देश-धर्म को श्रेष्ठ समझता है
परधर्म, प्रदेश तथा विरोधी को
यह खत्म कर देना चाहता है ।
यह तानाशाही का पृष्ठपोषक है
उचित उपचार करो यह संक्रामक है
संभालकर रखो यह आतंकवादी हो जाएगा ।
दूसरे को मारकर खुद मर जाएगा ।।
अरे जब से यह चुनाव हारा है
देखो डॉक्टर तब से यह बीमार है
गुमसुम बैठा रहता सबको देखता रहता है
रह-रहकर यह गहरी सांस लेता है ।
डॉक्टर - इसको हिनता की बीमारी है
इसका खून ठंडा हो गया है
यह हताश और निराश हो चुका है
यह अपना आत्मसम्मान खो चुका है ।
इसको समझाओ इसका इतिहास गौरवमय है
इसके बाप - दादा वीर बहादुर थे
इसको संभालो यह आत्महत्या कर लेगा
उठो तुम कर्म करो तुम इतिहास बदल दोगे ।
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