बेटी ( कविता )



पुत्री है गौरी लक्ष्मी सरस्वती
पिता की यह भारी संपत्ति
पिता करेंगे अपनी पुत्री - दान
 दान से होगा महाकल्याण ।


सभी दोनों में श्रेष्ठ कन्यादान 
जन्म - जन्म होता फल भुगतान 
बिन दक्षिणा असफल होता दान
 दक्षिणा है सभी गुणों का खान ।


दक्षिणा नहीं तो दान कैसा ?
 तिलक - दहेज नहीं तो शादी कैसी ?
तिलक - दहेज ही तो दक्षिणा है 
इसके विरुद्ध बोलना मना है ।


नेता देता झूठ - झूठ भाषण 
कानून बनाता झूठा शासन 
जब तक कन्या दान रहेगा 
तब तक तिलक दहेज रहेगा ।


 स्थानांतरित हुआ पिता का माल
 दक्षिणा पाकर पति हुआ मालामाल
 पति को मिला पत्नी का दान 
पूरा हुआ पति का अरमान ।


 पिता ने सौंपी पुत्री का हाथ 
 ग्रहण कर पति ने दिया पहचान
 पत्नी के सपाट ललाट पर
 खींचा एक लाल निशान ।


कोई इधर आंखें मत उठाओ 
निशान चीख - चीख कर कहता है
 यह संपतिया पिता की नहीं 
पति के नाम बुक हो चुकी है ।


तुम सती साध्वी सीता बनो 
भले शतमुख रावण को मारो 
फिर भी तुम घर से निकलो 
पति की बनी रहो मुंह मत खोलो ।


 पति प्रेम करे या ना करे 
पत्नी वफादार बनी रहे 
सिंदूर की रक्षा खातिर
 अपना बलिदान देती रहे ।


 नारी का हो रहा विकास
 पतंग बन रही आकाश
 चाहे कितना गोता खाओ
 डोरी रहेगी पति के पास ।


 नारी शक्तिवान बनेगी / कमाकर पति का घर भरेगी जब तक रहेगा माथे पर निशान / तब तक नारी गुलाम बनी रहेगी ।

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