धरती लाल ( कविता )


मां कल मुझको उठा देना 
सुबह - सुबह अहल सुबह
 आज गुरु जी ने कहा है
 देखना नव में सूरज लाल ।


उठो उठो छा गयी लाल
 उग रहा नभ में सूरज लाल
 मां देखो कितना सुंदर है
 गोल डगरा - सा सूरज लाल ।


आज रविवार की छुट्टी है 
नाई से कटा लो अपना बाल
 कर स्नान गरम रोटी खाओ
 मां बना दो रोटी सब्जी दाल ।


जब होगी यह धरती लाल 
बनेगी तब रोटी सब्जी दाल
 मां कब तक करूं इंतजार
 कब होगी यह धरती लाल ।


फूटेगा जब जन - जन का आक्रोश
 जल   जाएगी  क्रांति का मशाल
 क्रांति   मशाल  की लाली  से ही
 होगी  तब  यह   धरती  लाल ।


 क्रांति का स्वर्णिम लाली में 
उठेगी  आशा  की  किरणें
जब   हम  होंगे  खुशहाल
 तब बनेगी रोटी सब्जी दाल ।

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