भू - आकृतिक प्रक्रियाएं (geography class 11th)

भू - आकृतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन निम्नलिखित कारण से करते हैं :-
1. भौगोलिक परिवर्तनों के कारण पृथ्वी की सतह पर निर्मित होने वाली प्रक्रियाओं को समझने के लिए
2. इनकी संरचना के लिए होने वाली प्रक्रियाओं को समझने के लिए
3. उच्चावच तथा स्थलीय स्वरूपों की स्थापना  संबंधी कारणों का अध्ययन भू - आकृतिक विज्ञान के अंदर किया जाता है।
4. खोजबीन के उद्देश्य से भू आकृतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं।
5. यदि उन प्रक्रियाओं, जिन्होंने धरातल को विभिन्न आकार दिया और अभी दे रही है तथा उन पदार्थों की प्रकृति जिसे या निर्मित हैं को समझ लिया जाए तो निश्चित रूप से मानव उपयोग जनित हानिकारक प्रभाव को कम करने एवं भविष्य के लिए इसके संरक्षण हेतु आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।

धरातल असमतल निम्न कारणों से है :-
1. हमारी पृथ्वी की भू-पर्पटी गत्यात्मक (गतिशील) है।
2. हमारी पृथ्वी की भूपर्पटी क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर दिशाओं में संचरित (गति) होती रहती है।
3. भू-तापीय प्रवणता एवं अंदर के उष्मा प्रवाह के कारण
4. भूपर्पटी की मोटाई एवं दृढ़ता में अंतर के कारण अंतर्जनित बलों के कार्य समान नहीं होते हैं।
5. पृथ्वी के भीतर सक्रिय आंतरिक बलों में पाया जाने वाला अंतर ही पृथ्वी के बाह्य सतह में अंतर के लिए उत्तरदाई है।

बाह्य बलों एवं आंतरिक बलों के ऊर्जा के स्रोत निम्न है।
1. बाह्य बल - सूर्य
2. आंतरिक बल - दाब, रेडियो सक्रिय पदार्थ

पृथ्वी के ऊपर बाह्य बल तथा पृथ्वी के अंदर आंतरिक बल हमेशा परिवर्तनशील है।
पृथ्वी के ऊपर लगने वाले बलों को बहिर्जनिक बल कहते हैं।
पृथ्वी के आंतरिक में लगने वाले बाल्को अंतर्जनित बल कहते हैं।

बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम निम्न है
1. उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण
2. बेसिन / निम्न क्षेत्रों / गर्तो का भराव (अधिवृद्धि /तल्लोचन)
अंतर्जनित बलों की क्रियाओं का परिणाम निम्न है
1. यह शक्तियां धरातल के भागों को ऊपर उठाती है या उनका निर्माण करती है।

तल संतुलन :- धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अंतर के कम होने को तल संतुलन कहते हैं ।

भू-तल मानव के लिए उपयोगी साबित होती है और मानव के दोहन से किस प्रकार की समस्या हुई है।
1. मानव अपने निर्वाह के लिए भू-तल पर निर्भर रहता है तथा इसका व्यापक एवं सघन उपयोग करता है।
2. लगभग सभी जीवो का धरातल के पर्यावरण के अनुभाव में योगदान होता है।
3. मनुष्यों ने संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है।
4. हम लोगों को संसाधन का उपयोग करना चाहिए , किंतु भविष्य में जीवन निर्वाह के लिए इसके पर्याप्त संभाव्यता को बचाए रखना चाहिए।
5. धरातल के अधिकांश भाग को बहुत लंबी अवधि में आकार प्राप्त हुआ है तथा मानव द्वारा इसके उपयोग,  दुरुपयोग एवं  कुप्रयोग के कारण इसके संभाव्यता में बहुत तेज गति से ह्रास हो रहा है।

भू-आकृतिक प्रक्रियाएं

भू आकृतिक प्रक्रियाएं :-धरातल के पदार्थों पर अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों द्वारा भौतिक दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं  के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू-आकृति प्रक्रियाएं कहते हैं।

अंतर्जनित भू आकृतिक प्रक्रियाओं के उदाहरण दें :-
1. पटल विरूपण
2. ज्वालामुखीयता

बहिर्जनिक भू आकृतिक प्रक्रियाएं का उदाहरण दें :-
1. अपक्षय
2. वृहत क्षरण
3. अपरदन
4. निक्षेपन

भू - आकृतिक कारक का किसे कहा जाता है :-
1. जल, हिम, वायु इत्यादि जो धरातल के पदार्थ का अधिग्रहण तथा परिवहन करने में सक्षम है।
2. गतिशील कारक के रूप में प्रवाहित जल हिमानी हवा लहरें एवं धाराएं इत्यादि है, जो धरातल के पदार्थों को हटाता है, ले जाता है, तथा निक्षेपित करता है।
इस प्रकार प्रभावयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमानी, हवा, लहरों, धाराओं इत्यादि को भू-आकृति कारक कहा जा सकता है।

जब प्रकृति के यह तत्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील हो जाते हैं तो पदार्थों को हटाकर ढाल के सहारे ले जाते हैं और निचले भागों में निक्षेपित कर देते हैं।

भू - आकृतिक प्रक्रियाओं  में किस प्रकार गुरुत्वाकर्षण बल प्रभावशाली सिद्ध होती है।
1. गुरुत्वाकर्षण, ढाल के सहारे सभी गतिशील पदार्थों को सक्रिय बनाने वाली दिशात्मक बल होने के साथ-साथ धरातल के पदार्थों पर दबाव डालता है।
2. अप्रत्यक्ष गुरुत्वाकर्षण प्रतिबल लहरों एवं ज्वार भाटा जनित धाराओं को क्रियाशील बनाता है।
3. गुरुत्वाकर्षण एवं धार प्रवणता के अभाव में गतिशीलता संभव नहीं है अतः अपरदन, परिवहन एवं निक्षेपण भी नहीं होगा।
4. गुरुत्वाकर्षण एक ऐसा बल है जिसके माध्यम से हम धरातल से संपर्क में रहते हैं । यह वह बल है जो भूतल के सभी पदार्थों का संचलन को प्रारंभ करता है । 
सभी संचलन चाहे पृथ्वी के अंदर हो या सतह पर प्रवणता के कारण ही घटित होते हैं जैसे ऊंचे स्तर से नीचे स्तर की ओर तथा उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर ।

अंतर्जनित प्रक्रियाएं

1. पृथ्वी के अंदर से निकलने वाली ऊर्जा भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के लिए प्रमुख बल स्रोत होती है। 
2. पृथ्वी के अंदर की उर्जा अधिकांशत रेडियोधर्मी क्रियाओं, घूर्णन एवं ज्वारीय घर्षण तथा पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी ऊष्मा द्वारा उत्पन्न होती है।
3. भू-तापीय प्रवणता एवं अंदर से निकले उष्मा प्रभाव से प्राप्त ऊर्जा पटल विरूपण एवं ज्वालामुखीयता को प्रेरित करती है।

पटल विरूपण
सभी प्रक्रियाएं जो भूपर्पटी को संचलित उत्थापित तथा निर्मित करती है पटल विरूपण के अंतर्गत आती है इसमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं :-
1. तीक्ष्ण वलयन के माध्यम से पर्वत निर्माण तथा भूपर्पटी की लंबी एवं संकीर्ण पट्टियो को प्रभावित करने वाले पर्वतनी प्रक्रियाएं
2. धरातल के बड़े भाग के उत्थानपन या विकृति में संलग्न महाद्वीप रचना संबंधी प्रक्रियाएं
3. अपेक्षाकृत छोटे स्थानीय संचलन के कारण उत्पन्न भूकंप
4. पर्पटी प्लेट के क्षैतिज संचलन करने में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का आरेखी प्रस्तुतीकरण Part 3 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics