मन मंदिर ( कविता )
सुनो - सुनो एक संगीत सुनो ।
मन - मंदिर के गीत सुनो ।
न शब्द , न आवाज , न कोई जाप है ।
शब्दार्थ नहीं , विस्मय गीत सुनो ।
सुनो - सुनो एक संगीत सुनो ।
मन - मंदिर के गीत सुनो ।
यह मंदिर आम नहीं खास है ।
केवल इसमें मेरा निवास है ।
न कोई बेदी और न पुजारी ।
सौंदर्य आनंद के गीत सुनो ।
सुनो - सुनो एक संगीत सुनो ।
मन - मंदिर के गीत सुनो ।
यहां न पेंटिंग और न चित्र ।
होती नहीं कोई अनुष्ठान ।
न कोई पुस्तक और न मंत्र ।
संग में हैं केवल भगवान ।
सुनो - सुनो एक संगीत सुनो ।
मन - मंदिर के गीत सुनो ।
भीतर भी है एक ब्रह्मांड ।
तुम क्यों देखते आसमान ?
सुमिरन किसका करते हो ?
भीतर मुस्कुरा रहा भगवान ।
सुनो - सुनो एक संगीत सुनो ।
मन - मंदिर के गीत सुनो ।
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