कलियाँ
तृण फरियाद सुने कौन इस आँगन के ?
अनिर्वृत्त निगीर्ण स्वच्छन्द नहीं वों
क्षिति कुक्षि इतिवृत्त की आहुति दे दो
अकिञ्चन महफिल प्रबल अभिभूत अघाना
प्रलय पद्चिन्ह दहकता स्वर में
चिरकाल असि म्यान में क्या कदर ?
चातक क्यों है उचकाएँ खड़ा ?
यह ईजाद ओछा अतल उदधि के
घनेरी कोहरिल की तृषित घटाएँ
मरकज विभा मयस्सर सफर के
जनमत लूँ बहुरि दरगुजर के नहीं
महरूम दर्प - दीप्त तलघरा दूर
आदृत नहीं जो चिर गोचर विषाद
यह आतप नहीं विपद असार
चनकते कलियाँ को भी देखा मचलते
निमिष मग में बह चला तनते पङ्ख
सान्त प्रतिक्षण विसर्जन के मृदुल विस्तार में
पनघट तड़ित मूलम्मा दरख्यतों के
निठूर स्याही थी किरात चक्षु विभूत
अकिञ्चन उँघते मधुमय शबीह
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