कैसे भूल जाऊँ मैं ?



कैसे भूल जाऊँ मैं ?
आदिवासी की दस्तूरें ,
प्रकृति जिसके थे सहारे 
अंग्रेजों ने जिसे बाँध लिया 
खानाबदोश की तन देखो 
पसीनो से क्यो भीङ्ग रहें ?
वञ्चित रह रहकर जिसने 
अपने पेट को भी सिल दिए
सङ्कुचित कितने हो रहे यें
 क्या  लुप्त के कगारे  है ?
कैसे भूल जाऊँ मै .............!! 

माताएँ की साधना को देखो 
बहनें मुस्तकबिल तन मे खो रहें
पन्थी गुलामी की जञ्जीर जकड़े है
उनकी व्यथाएँ तड़पन कौन जाने !
घर - भार इनका आग के लपटों में बिखेर‌ रहा
बच्चों का चिङ्गार को देखो दरिन्दो
 नग्न पड़ी इसकी पुरानी बस्ती 
पेटी भरना अभी इनकी बाकी है !
लुटा दो, मिटा दो वों पुरानी सभ्यता 
भूखों को सूली पे लटका दो 
कैसे भूल जाऊँ मै .............!! 

 
हे भगवन् ! रोक लो अब इस बञ्जर को
ज्वलन मेरी असीम मे बह चला
जानता हूँ पहाड़ भी मौन पड़ा
नदियाँ बोली मैं भी इन्तकाल
सूर्य तपन  में  है मेरी कराह
कबसे अम्बर गरल बरसा रहें
सुनो न ! लौटा दो बहुरि बिरसा को
तन्हां कलित कर दे इस भव को
स्वच्छन्द हो धरा स्वप्निल में बसा कबसे
निर्मल रणभेरी विजय समर झङ्कृत
कैसे भूल जाऊँ मै .............!! 



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