छोटा मेरा खेत

छोटा मेरा खेत चौकोना 
कागज़ का एक पन्ना, 
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।

कल्पना के रसायनों को पी 
बीज गल गया निःशेष; 
शब्द के अंकुर फूटे, 
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

झूमने लगे फल, 
रस अलौकिक, 
अमृत धाराएँ फूटतीं 
रोपाई क्षण की, 
कटाई अनंतता की 
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।

रस का अक्षय पात्र सदा का 
छोटा मेरा खेत चौकोना।

लेखक :-- उमाशंकर जोशी

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