विचलित मन


मानस होता चंचल हमारा
कभी कुछ तो कभी कुछ
हर लम्हें ये विचलित मन
कुछ न कुछ ब्योरना रहता ।

कभी कभी ये मन हमारा
खोया – खोया सा लगता
कुछ खाने -पीने का न हमें
करता हमारा विचलित मन ।

ये चित्त हमारा कभी उत्तम
कभी अधम की ओर जाता
जैसा हम देखते – सोचते
उधर ही जाता विचलित मन ।

हमारा ये विचलित मन
कभी इधर तो कभी उधर
करता रहता ये बार – बार
विचलित मन न रहता स्थिर ।

अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

आंकड़ों का आरेखी प्रस्तुतीकरण Part 3 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)