गीत- अगीत (रसवन्ती से)
गीत, अगीत, कौन सुन्दर है ?
(१)
गाकर गीत विरह के तटिनी
वेगवती बहती जाती है,
दिल हलका कर लेने को
उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता,
"देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।"
गा - गा कर बह रही निर्झरी,
पाटल मूक खड़ा तट पर है।
है गीत, अगीत, कौन सुन्दर है ?
(२)
बैठा शुक उस घनी डाल पर
जो खोंते पर छाया देती,
पंख फुला नीचे खोंते में
शुकी बैठ अण्डे है सेती ।
गाता शुक जब किरण बसन्ती
छूती अङ्ग पर्ण से छन कर,
किन्तु, शुकी के गीत उमड़ कर
रह जाते सनेह में सनकर ।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में,
फूला मग्न शुकी का पर है गीत,
अगीत, कौन सुन्दर है ?
(३)
दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब
बड़े साँझ आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा को
घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी - चोरी खड़ी नीम की
छाया में छिपकर सुनती है,
'हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिघना', यो मन में गुनती है।
वह गाता, पर किसी वेग से
फूल रहा इसका अन्तर है ।
गीत, अगीत, कौन सुन्दर है ?
सहरसा, १९३७ ई०
-- रामधारी सिंह दिनकर
टिप्पणियाँ