चाह इंसानों की


हम इंसानों की चाहत
होती सिवा एक हमारी
कितना भी निस्तार मिले
फिर भी और चाहते हैं हम ।

हम इंसाने दिन-प्रतिदिन
होते जा रहे ही ए-काहिल
भव ने बहुत सी प्रसार की
इंसानों ने इस विज्ञान से ही ।

हम इंसाने तो हर हाल में
शोधते रहते सुकून सतत
आराम के चलते ही हम
अक्सर अपनाते त्रुटिपंथ ।

विज्ञान ने हम इंसानों को
दिया बहुमूल्य वरदान हमे
फिर भी हम मनुजों तो यहां
चाहते है आराम ही आराम ।


अमरेश कुमार वर्मा

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