कैमरे में बंद अपाहिज

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान 
हम एक दुर्बल को लाएँगे 
एक बंद कमरे में

उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं? 
तो आप क्यों अपाहिज हैं? 
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा) 
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है
जल्दी बताइए वह दुख बताइए 
बता नहीं पाएगा

सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा?)
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए 
(यह अवसर खो देंगे?)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते

हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे 
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का 
करते हैं?
(यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा)

फिर हम परदे पर दिखलाएँगे 
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी 
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं

आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
 रहने दो 
परदे पर वक्त की कीमत है) 
अब मुसकुराएँगे हम

आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम 
(बस थोड़ी ही कसर रह गई) 
धन्यवाद।

                                              लेखक:- रघुवीर सहाय

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