पंछी हमारा मित्र

सुबह – सुबह जो उठके
सहजात अपव्यय करती
चीं – चीं की आवाजों से
एक तरह से हम सब का
पंछी होता सहचर हमारा ।

पंछी शुचि करती कीटों को
जिस अज़ा कम पड़ जाती
हम सब मनुजों को चित्त से
करना चाहिए शुक्रिया इन्हें
पंछी होता सहचर हमारा ।

ये खग हम मनुष्यों को
करता हर पल आश्रय
इनकी अवलंब को हम
करते हैं बिल्कुल ना कद्र
पंछी होता सहचर हमारा ।

हमें इन सब अडजों को
न करना चाहिए घनीभूत
हमें इन्हें कुछ दाना देकर
मिलती है मानस को ठंढक
पंछी होता सहचर हमारा ।

अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

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