अकेलापन


जब होती है हमे अकेलापन
मत लगता नहीं इधर – उधर
चित्त में छाई रहती है हताशी
विचलित मन लगता खोया सा ।

किसी को आने से राँध हमारे
हम चाहते कही पृथक हो जाए
कही परे जाकर अकेला रहना
यही अकेलापन की शिनाख़्त ।

पढ़ना, लिखना, खाना, पीना
कुछ भी ना लगता उत्तम हमें
क-दूर जाकर अकेला रहने को
करता रहता यह विचलित मत ।

अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय बिहार

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का सारणीकरण तथा सारणी के अंग Part 2 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics