मैं लौटूंगी नहीं

मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाज़े खोल दिए हैं 
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं 
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी 
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी हूँ राह देख ली है।
अब मैं लौटॅगी नहीं

अफ़गानी कवयित्री :-  मीना किश्वर कमाल

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