सूरदास के पद

                       (1)

         ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी । 
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी। 
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी । 
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी। प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी। 
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।

                          (2)

             मन की मन ही माँझ रही। 
कहिए जाइ कौन पै ऊधी, नाहीं परत कही। 
अवधि अधार आस आवन की, तन मन विधा सही। 
अब इन जोग सँदेसनि सुनि -  सुनि, विरहिनि बिरह दही। चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही। 
'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही ।।

                           (3)

            हमारैं हरि हारिल की लकरी। 
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी। 
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री। सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी। 
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी। 
यह तो 'सूर' तिनहि लै सौंपौ, जिनके मन चकरी ॥

                       (4)

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए। 
समुझी बात कहत मधुकर के समाचार सब पाए। 
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए। 
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए। 
ऊधौ भले लोग आगे के पर हित डोलत धाए। 
अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए। 
ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए। 
राज धरम तो यहै 'सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए।।

                                                      लेखक:- सूरदास

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का सारणीकरण तथा सारणी के अंग Part 2 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics