मंजिल


मंजिल हमें एक दिवा में
न मिल सकती हैं कभी
सतत आगे बढ़ने से ही
मिलती हमारी मंजिल है ।

हयातों में अक्सर जिन्हें
मिलती न कोई अवलंब
वे अपने सहर्ष- संघर्ष से
पाते अपने मंजिल को ।

मंज़िल पाने में हमसबों को
हजारों फ़ज़ीहते आएगी
मुफ़लिसी से लड़कर ही
मिलती हमारी मंज़िल है ।

मंज़िल को हासिल करने में
कई काँटे रास्ते में आएंगे ही
यही काँटे ही हमें हमारे
पैरों के रफ्तार को बढ़ाएगे ।

जिंदगी में ऐसा ए- अमुक
एक मानुज भी नहीं होगा
जो अपने जीवन में कभी
औंधा, प्रवृत्त न हुआ होगा ।

निष्ताफलता से हमें कभी
अकुलाना न चाहिए हमें
विफलता के पश्चात ही
मिलती हमारी मंज़िल हैं ।

अमरेश कुमार
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय बिहार

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का सारणीकरण तथा सारणी के अंग Part 2 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics