एक नवीनतम गीत

                 *गीत* 
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आओ पास हमारे बैठो,
   अपलक तुम्हें निहारूँ प्रियतम
अपने नैनों के दीपक से,
    मैं आरती उतारूँ प्रियतम

दर्श आपके पा जाऊँ तो,
     मेरे नैन चमक उठते हैं
पाते ही सानिध्य-सुधा के,
     घर-संसार दमक उठते हैं
मेरे मन की स्वयं समझ लो,
       मैं क्या बैन उचारूँ प्रियतम
आओ पास हमारे बैठो,
    अपलक तुम्हें निहारूँ प्रियतम

मुझसे कभी अलग मत होना,
            जीवन भारी हो जाएगा
बिना तुम्हारे मुझे बता दो,
           यह तन कैसे जी पाएगा 
जो तुम हाँ कह दो तो हँसकर,
      अपना जीवन वारूँ प्रियतम
आओ पास हमारे बैठो,
   अपलक तुम्हें निहारूँ प्रियतम

सहज-समर्पण लगा दाँव पर,
       और हृदय भी लगा हुआ है,
अपनापन भी साथ रखा है,
         तथा समय भी लगा हुआ है
मुझे जीतने की यदि ठानो,
          मैं फिर पाँसे हारूँ प्रियतम
आओ पास हमारे बैठो,
   अपलक तुम्हें निहारूँ प्रियतम

लुका-छिपी में कहीं कभी भी,
        इधर-उधर जब हम हो जाएँ
आपाधापी में जीवन की,
              एक-दूसरे से खो जाएँ
तुम मुझको आवाज लगाओ,
         मैं भी तुम्हें पुकारूँ प्रियतम
आओ पास हमारे बैठो,
     अपलक तुम्हें निहारूँ प्रियतम

भार उठाओ तुम जीवन का,
           और सहारा मैं बन जाऊँ
तुम मेरे साथी बन जाओ,
        साथ तुम्हारा मैं बन जाऊँ
पथ में यदि काँटे आ जाएँ,
      मैं फिर उन्हें बुहारूँ प्रियतम
आओ पास हमारे बैठो,
   अपलक तुम्हें निहारूँ प्रियतम

अपने नैनों के दीपक से,
       मैं आरती उतारूँ प्रियतम
आओ पास हमारे बैठो,
    अपलक तुम्हें निहारूँ प्रियतम

    लेखक :-  डॉ० रामप्रकाश  'पथिक'  कासगंज

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