उत्साह

बादल, गरजो!- 
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ! 
ललित ललित, काले  घुँघराले 
बाल कल्पना  के-से, पाले, 
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले! 
वज्र छिपा, नूतन कविता 
फिर भर दो -
बादल, गरजो!
विकल विकल, उन्मन   थे उन्मन 
विश्व के निदाघ के सकल जन, 
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन! 
तप्त धरा, जल से फिर 
शीतल कर दो- 
बादल, गरजा।

लेखक:-सूर्यकांत  त्रिपाठी निराला

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