फूलों__के__पूर्व__जन्म (हुङ्कार से)
प्रिय की पृथुल जाँघ पर लेटी करती थीं जो रँगरलियाँ, उनकी क़ब्रों पर खिलती हैं नन्हीं जूही की कलियाँ।
पी न सका कोई जिनके नव अधरों की मधुमय प्याली,
वे भौंरों से रूठ झूमतीं बन कर चम्पा की डाली।
तनिक चूमने से शरमीली सिहर उठी जो सुकुमारी, सघन तृणों में छिप उग आयी वह बन छुई- मुई प्यारी।
जिनकी अपमानित सुन्दरता चुभती रही सदा बन शूल,
वे जगती से दूर झूमतीं सूने में बन कर वन-फूल ।
अपने वलिदानों से जग में जिनने ज्योति जगायी है,
उन पगलों के शोणित की लाली गुलाब में छायी है।
अबुध वत्स जो मरे हाय, जिन पर हम अश्रु बहाते हैं,
वे हैं मौन मुकुल अलबेले खिलने को अकुलाते हैं !
-- रामधारी सिंह दिनकर
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