संदेश

दो पैंडेल

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दो पहलूओं जीवन के साइकिल के है बुनियादी रूप दो पैंडेल के करीनों से अग्रसर रहने का संदेश देती पथिक की पथ की काया निर्मल करती मलिन डगर सहचर रहती  सदा हमारा सतत् पोषणीय की धारणा उज्ज्वल हो हमार परिवेश करती रहती सदा हर काम न  थकती  न  उफ करती बढ़ती चलती हमार कदम चौकस करती अचेतन मन को ट्न - ट्न की स्वतः नाद से रहो साथ हमारे प्रगतिशील जन - जन तक पहुंचाती पैगाम सादगी आसरा  अलम्बित  सदा पुनीत करती गरोह हमार प्रभंजन  रफ़ाकत  सदा पाक करती विश्वपटल राज

Long way of a Dream

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Long way of a dream Life spiny like as rainstorm Warfare soul in mid stream Mystery tangled in brainstorm Emphemeral is fantasy Owl's eyes Or further Shadow of New moon End of desire life demise Or then almighty boon Authenticity some in dream is Or same fantasies star What a dreams wiz is Smug waveform of moon are Ladder to success are what dream  Why does desire happen  Why dreams comes me  Fleeting why is the dreamen  Dream what want to learn  What the essence of life  Is truth of life in return Dream is the soul of life.

साधना

कर साधना हो मुसाफिर जलसा से हीं पृथक हो जा अर्जुन की गांडीव तू बन बन जा श्री कृष्ण सुदर्शन महासमर के डगर पर सदा व्योम की उस अनन्त तक  रख आस सत्यनिष्ठ कर्तव्य की कामयाबी की उस बुलन्दी को छू रह  अचल उम्मीदों को  रख समय का पाखी  तेरे पास वक्त की अहमियत आलोक गुमराह न होना अपने पथ से शून्यता की नभ को न देख चढ़ जा उस अगम नग पर ख्वाबों  की  जंजीरों  से अपने महत्वाकांक्षा समझ ब्योहारों  के  बयारों  संग इसरारों का  उर बाड़व रख मुकद्दर का  प्रभा गगन  है हौंसला का अवदान तेरे पास उन्मादों का हैं दास्तां जहां सत्य  राह पर  चल सदा ज़िन्दगी का यहीं मकसद जहां विजय का भी माधुर्य स दा

क्षितिज कविता

  मंद  - मंद बयारों के झोंके  अंतः करण को विचलित करती  विहग की कूजन नाद झंकार - सी हिलकोरे करती  मधुमास  आमद  परिपेश नैसर्गिक  उछाह  भरती नवपल्लव  कुसुम  प्राघूर्णिक व्योम - धरा आदाब करती निदाघ तीप्त तरणि धरा अंशुमान करता क्षितिज कगार जग - आतम का सम्भार जहां यामिनी मृगांक की निगार करती घनघोर अम्बू प्रदीप मुकुल दिव्योदक सौदर्यं प्ररोह धरा तांडव  घनप्रिया हूंकार उद्दीप्तमान हसीन अवनि आलम अघम संवेगहीन अनी अहवाल भावशून्य शिथिल पड़ जाती जहां दहल  उठती  रुह की काया वहीं अरुणिमा  समरसता  सानंद

बेटियाँ बोझ क्यूँ?

हम बेटियां तुम पर  बोझ क्यूँ....?  खटकते तुम्हारी आँखों में  हम रोज क्यूँ...?  क्या ही बिगाड़ा है हमनें  ब्लकि, यूँ कहो  तुम्हें संवारा है हमनें  माँ हो हरदम पास,  है तुम्हें ये शौक क्यूँ....? हम बेटियों को  तुमसे खौफ क्यूँ..? रौनक है घर में  हमारे होने से.... फर्क़ तुम्हें नहीं  क्यूं हमारे रोने से.... ब्याहने को करते  लड़की की खोज क्यूँ...? हम बेटियां तुम्हें लगते  बोझ क्यूँ.....? जिंदगी जीने का  हमे हक है.... हमसे शुरू यें दुनिया  तेरी हमपर ही खत्म है।  क्या अब तुम्हें इसमें भी  कोई शक है.... दादी माँ, सुनाओ कहानियां... ऐसी तुम्हें चाह क्यूँ..? दिखाते वृद्धाश्रम का  हमे राह क्यूँ.....? घर में जन्मीं लक्ष्मी की  क्यों तुम्हें चाहत नहीं... क्यों देते हमे तुम राहत नहीं.. हमें गर्भ से ही  तुमसे खौफ क्यूँ...? हम बेटियां  तुमपे बोझ क्यूँ.......?... पलक श्रेया जवाहर नवोदय विद्यालय बिहार

मैं क्या कहूं ?

मैं क्या कहूं इस धरा को प्रकृति का मनोरम दृश्य जहां हरेक जीवन का बचपन है नटखट नासमझ अल्हड़ - सा प्रकृति की सुंदरता अत्योत्तम पर्वत नीड़ सागर हरियाली जहां पर्वत की विलासिता को देखो वृहत दीर्घ तुंग गगनचुंबी धरा उस स्वच्छन्द परिंदा  को देखो नौकायन सौंदर्य सरिस कान्ति  मनुज  से  इस्तदुआ  है मेरी प्रभाहु  है, प्रबाहु रहने दो मुझे पारावार वसुधा की प्रदक्षिणा पुनीत - मंजुल - दर्प - वालिदैन ज़िन्दगानी  अनश्वर  कलेवर मत हमल  प्रवाहशील  अनाशी जीवन वृतांत हरीतिमा तश़रीफ आलिंगन करती सारंग पावस नभचर का आशियाना जहां आतम  अचला  आलम्बन प्रभाकर प्रीतम उज्ज्वल प्रभा पराकाष्ठा प्रतीतमान प्रभुता  प्रदायी कर्ण कृर्तिमान वजूद चक्षुमान अखिलेश्वर वसुन्धरा सुधांशु सौम्य व्योम निलय कालचक्र उद्दीप्तमान प्रकृति सौरजगत आबोहवा पद्निनीकांत शशिपोशक  अपरपक्ष  कान्तिमय 

पत्रकारिता

आधुनिक सभ्यता का सार है पत्रकारिता हमारा विकास है दैनिक सप्ताहिक मासिक वार्षिक लोकतंत्र का मुकम्मिल दास्तां यह समसामयिक ज्ञान का आधार है बाजारवाद व पत्रकारिता अभिसार में कार्य कर्तव्य उद्देश्य की आचार संहिता आत्माभिव्यक्ति व जनहितकारी समावेश समाज की दिग्दर्शिका है देश का  विकासवाद का निरूपण जहां सामाजिक सरोकार की दहलीज लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की परिधी बुनियादी  कालातीत  बहुआयामी  सूचनाओं का अधिकार है जहां रहस्योद्घटन सामाजिक सामंजस्य खोजी पत्रकारिता का है सिद्धांत समाजवादी की आधारभूत शिला सशक्त नारी स्वातंत्र्य समानता जहां कर्त्तव्यपूर्ण सदृढ़ राष्ट्र का प्रवर्द्धन ही सामाजिक अपवर्तन उदारीकरण है

बचपन कविता

  क्या खूब वो बचपन का  जमाना था...  मां का प्यार ही... खुशियों का  खजाना था  खूब सारे खिलौने की  चाहत थी.... और दिल चॉकलेट का  दीवाना था.... ना दिल में डर,  ना जमाने का ताना था ... ना रोने की वजह,  ना हंसने का  बहाना था.... कितना भी थके  स्कूल में हों , शाम को खेलने भी  जाना था....  लड़ना झगड़ना  सब माफ था... दिल दोस्तों का  दीवाना था...  क्या खूब वो बचपन का  जमाना था ... खेलने में बीत जाता  सारे दिन.... अब राते कटते बस  तारे गिन गिनके  हर बच्चा था खुद में  स्वाभिमानी.... पसंद था सबको बचपन में  बारिश का  पानी... जेब मे पड़ा पैसा  भले ही कम था... दिलों में ना कभी  कोई गम था... उस यादों भरी बचपन में  बहुत दम था... मिल जाता दोबारा वो सपनों का घर, अगर ठहर जाता...  वह बचपन का पहर  कितना प्यारा दोस्तों से  याराना था... क्या खूब वो बचपन का  जमाना  था...

दास्तां

इतिवृत्त का क्या सुनूं  मैं गुलामी की जंजीर जहां । कोई औपनिवेशिक होते देखा  किसी को उपनिवेश धरा । साध्वी वनिता का यंत्रणा ज्वाला में धधकते देखा । अस्पृश्यता व सहगमन का कराहेना  का  नाद  देखा । तांडव छाया हाशिया का  अपनों का अलगाव देखा । क्या कहूं उन दास्तां को   दासता क्लेश उत्पीड़न देखा ।  त्रास - सी दुर्भिक्ष काल का  सियासत आर्थिक संकट देखा ।  संप्रदायों का बहस - मुबाहिसा‌ को   मानवीयता घातक हनन देखा । रक्तरंजित कुर्बानियों की दास्तां  वतन पे प्राण निछावर होते देखा । विरासत - संस्कृति - धरोहर प्रताप  फिरंगीयों का परिमोश होते देखा ।

क्या नाम दूँ?

मैंने जितना तुम्हें चाहा,  तुम्हें उतना ही दूर पाया  बेइंतहा है तुम्हें चाहा,  मगर बात ये तुमसे  कह न पाया  बढ़ती आश को कैसे  आराम दूं... इस चाहत को मैं  क्या नाम दूं....?  बड़ी-बड़ी बातें हमें  नहीं है आते... हम तो जरा सा  मुस्कुरा कर भी,  इन आंखों से ही  बहुत कुछ हैं कह जाते  इससे ज्यादा और क्या अरमान दूं,  तुमसे दिल्लगी को मैं  क्या नाम दूं....?  हाथों में हाथ डालकर किए,  न जाने कितने ही वादे  ख्वाब सब तोड़ दिए,  बस रह गए हम आधे  भूल जाऊं तुझे....?  क्या अब..... इस दिल को यह फरमान दूं.....?   तू ही बता...  इस रिश्ते को ....  मैं क्या नाम दूं...?

भाई बहन का प्यार

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भाई  बहन का प्यार वास्तव में होता बेशुमार बहन छोटी हो या बड़ी  अपने भाई के सामने सुरक्षित महसूस करती  माता पिता के बाद है  प्यारा भाई का स्थान भाईलोग को मेरा नमन है एक भाई ने खूब कहा है बहन नहीं तो जीवन बेकार जीवन सूना - सूना सा होता है एक बहन के लिए है उसका भाई सुपर हीरो  दुनियावाले जैसे भी हो उसके सामने सब जीरो है बहन ये गलत है मत कर ये कहने वाले भी भाई है भाई मैं मेरी जान बसती भाई से ही है मेरी पहचान प्यार का नहीं करता इज्हार बस फर्ज निभाता अगाध सहसा कभी झगड़ा हो जाती उसके बिना जगत विरान लगता

वेदना - सी

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वेदना - सी मुस्कान क्यों ? क्यों  है कुंठित काया ? क्या छुपा है भग्नहृदय में ? सतत् क्लिष्ट   है आह्निक अवसाद तड़पन का भार वहन  क्यों   कर  रहे ? व्याल का संहार है क्या ? आफत का मीन जहां महिमामंडित  दुनिया  में महासमर  का  बेला  है त्रास  का विषाद क्यों ? कर्कश  का आतप  जहां निबल - सा  अनिभ्य कलेवर खुदगर्ज  का  अपारा  है अभ्यागम का आसरा कहां मृगतृष्णा का आवेश जहां मक्कारी का उलझन  है मन्दाक्ष  का  जमाना  नहीं अपहति  रहा आदितेय का नृशंसता - सा इफ़्तिख़ार नही

पंखुरी

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:पंखुड़ी: कोमल पंखुड़ी से  वो तेरे एहसास...  साथ के हर लम्हें,  हमेशा रहेंगे ख़ास.... वो गुलाब अब खूबसूरत  कहां...? पंखुरी में जिसकी तेरी  पलक नहीं ... परछाईं में तेरी अब  झलक नहीं... तुमने यू रिश्ता जो तोड़ा,  हमारी सब राहें ही  अलग हो गयीं....  इन्हीं हाथों ने खिलाया  जो फ़ूलों का जोड़ा,  उसकी पंखुड़ियां भी  बिखर सी गयीं... भले ही गोद में कांटों के  वो गुलाब था...  सुख गयीं  वो  पंखुरी अब.... जिसकी खुशबु  मैं समेटता था। तेरे नाज़ुक होंठ,  थे जो पंखुरी के समान.. नशीली वो आँखे,  जिसमें था मेरा सारा जहान.. एक समय इस दिल पर  तेरा राज था....  मगर, आज तेरा वो तीखा  वार था... नहीं आना अब लौट कर  तुम मेरे पास...  नाजुक पंखुरी था  तेरा हर एहसास.. बीते हर लम्हें जो,  हमेशा रहेंगे....  सबसे खास...

इंतकाम कविता

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मत देख उस भुजंग को , गरल  का घड़ा  भरा  है । ह्रदय  की वेदना  समझों , मारुत   की  बवंडर   है । मत पूछ उस लालिमा को , उनकी  ज्योतिमान धरा है । कर  मशक्कत  हो  प्रभा , वों बुलन्दी का आलम्भन है । मत सुन उस भ्रममूलक को , मिथ्या  का  पुष्ट आबंडर  है । छल - प्रपंच   परवशता  ही , निशाचर   का  कुजात   है । मत कर उस  अशिष्टता  को ,              अधर्मपना अभिशप्त   साँकल  है । अपकृष्ट अनावृष्टि  बाँगुर  गात ही , घातक अंजाम का  द्योतक  है । मत  हंस  उस  मुफलिस  को , दमन  का  व्यथा  असह्य   है । वक्त  का  आसरा  है   उसे , इंतकाम का ज्वाला उग्र  है ।

जिंदगी

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जिंदगी एक खेल है, जहां सुख और दुख  दोनों का मेल है.... खुशियां है कैद जहां, फिलहाल वह गमों का जेल है।  उसने रचा यह कैसा खेल है...?  जिंदगी एक रेस है,जो  मुश्किलों में भी डाटा रहा, यहां उसी की जीत है .... जिंदगी की किताब में  हमारे हर लम्हे महफूज हैं, लफ्ज़ सारे धुंध में लिपटे पड़े... मगर फिर भी हम  पढ़ने को मजबूर हैं....  जिंदगी तुझसे शिकायत नहीं है  मगर हुआ जो भी ये , क्या लगता वह सही है ..? यार ! हम तो मुस्कुराने से भी  डरने लगे हैं .. यू  तिनका तिनका कर  बिखरने लगे हैं.... जिंदगी एक गणित है, जहां सारे गुनाह का  हिसाब लिखित है.... अब वो ख्वाब आसमान से  लौट रहा..... जमीं पर ही पनाह  खोज रहा..... बहुत वक्त हुआ  इन अंधेरों से मिला  अब तो बेचैन दिल भी  सवेरा खोज रहा। खत्म कर जिंदगी  अब तेरा ये जंग. ...  जीना चाह रहा मैं  बस यादों के संग  हू तन्हा मैं, लौटा दे  मुझे मेरे खुशियों के रंग.... पलक श्रेया जवाहर नवोदय विद्यालय बेगुसराय

हड़प्पा सभ्यता कविता

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सिंधु नदी का प्रवाह जहां हड़प्पा सभ्यता का विकास वहां पुरावस्तुओं - साक्ष्यों का अन्वेषण संस्कृति सभ्यता का है पदार्पण मध्य रेलवे लाइन तामील दौर बर्टन बंधुओं इत्तिला आईन से आया हड़प्पा सभ्यता का इज़्हार नई संस्कृति नई सभ्यता का दौर बहु नेस्तनाबूद भी बहु प्रणयन भी नगरीकरण का आसास उरूज़ निषाद जाति भील जानी काया मिले  मृण्मूर्तियां  वृषभ  देहि चार्ल्स मैसेन  की  पहली खोज कनिंघम आए, आए दयाराम साहनी आया मोहनजोदड़ो का वजूद भी रखालदास बनर्जी का है तफ़्तीश अन्दुस - सिन्धु - हिंदुस्तान रूप बृहत - दीर्घ  इतिवृत्त  सभ्यता क्षेत्रीयकरण - एकीकरण - प्रवास युगेन मिला अवतल चक्कियां  का  राज विशिष्ट अपठनीय हड़प्पा  मुहर कांस्य युगेन का कालचक्र आया मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल,  धोलावीरा, राखीगढ़ी का यहीं केंद्र कृषि प्रधान की अर्थव्यवस्था और थी व्यापार और पशुपालन अनभिज्ञ थे घोड़े और लोहे से जहां कपास की पहली काश्तकारी  बृहत्स्नानागार संघ का अस्तित्व थी स्थानीय स्वशासन संस्था धरती उर्वरता की देवी थी शिल्पकार, अवसान का इस्बात है

जीवन का प्रादुर्भाव

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सौर निहारिका की अभिवृद्धि से , हुआ  हेडियन पृथ्वी का निर्माण । आर्कियन युग  का  आविर्भाव , हुआ  जीवन  का   प्रादुर्भाव । हीलियम व हाईड्रोजन संयोजन से , सूर्य नक्षत्र  का  आह्वानक्ष  हुआ । कोणीय आवेग के प्रतिघातों  से , हुआ व्यतिक्रम  ग्रहों  का  निर्माण । ग्रह - उपग्रह  का  उद्धरण  आया , आया  गुरुत्वाकर्षण  का  दबाव । ज्वालामुखी सौर वायु के उत्सर्जन से , हुआ  वातावरण  का   प्रसार । संघात सतह  मेग्मा  का  परिवर्तन , किया मौसम - महासागर का विकास । लौह प्रलय के प्रक्रिया विभेदन से , ग्रहाणुओ से स्थलमंडल का विकास । अणुओं रासायनिक प्रतिलिपिकरण से , मिला जीवाणुओं से जीवन का आधार । आवरण  संवहन  के  संचालन  से , हुआ  महाद्वीप प्लेटों  का  निर्माण । एक कोशिकीय से बहु कोशिकीय बना , वनस्पति से मानव का विकास हुआ । संस्कृतियां  आई  सभ्यताएं आई , है  मिला विश्व जगत  का  सार । संप्रदायों  के...

✍🏻गंगा की व्यथा...।।

गंगा नदी ही नहीं है, हमारी संस्कृति का प्रतीक है।। गंगा के प्रवाह में विहित ऊर्जा की वह  दिव्य शक्ति है।। गंगा की  वेदना ... कही नहीं जाती हैं, वह दिन पे दिन प्रदूषित  होती जाती हैं।। वह गंगा भगवती है अनादि काल से  वसुंधरा पर बहती उनकी  धारा है।। विष्णु के चरण कमलों से निकली शिव के मस्तक पर शोभा पाती है।। भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न हो धरती पर अपनी  धरा बहाती है।। अत्यन्त तीव्र वेग को  धरती सह नहीं पाती है तब शिव की जटा में समाती है।। अपनी कुछ धारा को वसुंधरा पर पहुंचाती हैं तब गंगा के पवन जल से धरती जगमगाती है।। राजा सगर के, साठ हजार पुत्रों का मोक्ष कर जाती है, गंगा के पवित्र जल से धरती शुद्ध हो जाती है।। हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के , सुंदर वन तक अपना  स्वरूप  फैलाती हैं, जन - जन के दिलो में आस्था उठ आती हैं।। जिनकी स्मृति  लाखो  पापो का नाश कर देती हैं जिनके नाम उच्चारण से  सम्पूर्ण जगत को पवित्र कर देती हैं।। आज वह अपनी व्यथा बताती है नहर , आवास , सड़क निर्माण उद्योगों से निकलने वाला कचरा पतित पावन गंगा के जल को दूषित...

पलट रही विश्वकाया

मोहमाया  के जगत में, अवमान - मान का तिलम है । सुख - दुःख का मिथ्या रिश्ता, दर्द भरी कहानी है सबका । कोई  जीता  रो - रोकर.... आर्थिक के अभिशाप से । कोई जीता है हंस - हंसकर, चोरी - डकैती - लूट - हत्या से न  किसी का कभी था, न  होगा  कभी  किसी  का । कहीं सत्ता की लूटपैठी है, कहीं मजदूरी भी नसीब नहीं । क्या यहीं आदर्शवादी है ? क्यों दिगम्बर हो रहा संसार ! वृक्ष - काश्त हो रही विरान, पलट   रही   विश्वकाया । जल के लालायित है अब, अब होंगे प्राणवायु के व्यग्रता । क्या होगा अब इस जगत का !  जब हो जाएगा मानव दुश्चरित्र ।

मेरा भाई कविता

दूर होकर भी जो पास है लगता  वह भाई है मेरा, जो दूर से भी  मेरा ख्याल रखता....  हर कोई जन्म से साथ नहीं,मगर जिस से बना दिल का रिश्ता होता, वह भाई एक फरिश्ता होता है....  मुश्किलों में भी हंसना सिखाया  उसनें मुझको अपनी जान बताया  रूठ कर भी है जिसे मुझसे ही प्यार  वों भाई है मेरे पास हमारे जज्बात तो यूं ही मजबूत हो जाते  जो मुसीबत के सामने बस  वो खड़े हो जाते.....  हमेशा लड़ना और झगड़ना, यह पसंदीदा एक काम है   फिर भी.... इस दिल की वह शान है  इस पर सारा जहां कुर्बान है  दूर होकर भी जो पास है लगता  वह भाई है मेरा जो , दूर से ही मेरा ख्याल रखता   हर मोड़ पर वह मेरे साथ हो , हर घड़ी हो मेरे पास हो,  हालात जैसे भी हो....  बस मेरा भाई मेरे साथ हो

शिक्षा का हूंकार

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इमदाद नहीं, शिक्षा का हूंकार हो, ज्ञान-दक्षता-संस्कार का समाविष्ट हो । परिष्कृत  अंतर्निहित क्षमता व्यक्तित्व, संकुचित नहीं,  व्यापक प्रतिमान हो । सभ्य, समाजिकृत योग्य ज्ञान-कौशल, सोद्देश्य सर्वांगीण सर्वोत्कृष्ट विकास हो । प्राकृतिक प्रगतिशील सामंजस्य पूर्ण, राष्ट्रीय  कल्याण और  संपन्नता  हो । पूर्णतया अभिव्यक्ति समन्वित विकास ही, अंतः शक्तियां बाह्यजीवन से समन्यव हो । औपचारिक-निरौपचारिक-अनौपचारिक नहीं, स्मृति - बौद्धिक - चिंतन  स्तर प्रतिमान हो । स्वाबलंबी - आत्मनिर्भर - सार्थकता नींव ही, गांधीवाद सशक्त प्रासंगिक अनुकरणीय हो । स्वायत्ता कौशलपूर्ण आत्म - नियमन समाज, समतामूलक  स्वराज  का सदृढ़ राष्ट्र  हो । सप्रभुत्व संपन्नता, समानतावादी एकता, प्रतिष्ठा, गरिमा, बंधुत्वा, मौलिक अधिकार हो । अखंडता, अवसरता, लोकतंत्रात्मक गणराज्य, सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक न्याय विचार हो । बेरोजगारी, अपने, रुग्ण आबादी, प्रदूषण, अभिशप्त, अंधकारमय, दीन, इंतकाल है । सामाजिक नैतिक आध्यात्मिक मूल्य ही,  आधुनिकीकरण विकसित आर्थिक देश है । स्वच्छता, सततपो...