क्षितिज कविता

 मंद - मंद बयारों के झोंके 
अंतः करण को विचलित करती 
विहग की कूजन नाद
झंकार - सी हिलकोरे करती 

मधुमास  आमद  परिपेश
नैसर्गिक  उछाह  भरती
नवपल्लव  कुसुम  प्राघूर्णिक
व्योम - धरा आदाब करती

निदाघ तीप्त तरणि धरा
अंशुमान करता क्षितिज कगार
जग - आतम का सम्भार जहां
यामिनी मृगांक की निगार करती

घनघोर अम्बू प्रदीप मुकुल
दिव्योदक सौदर्यं प्ररोह धरा
तांडव  घनप्रिया हूंकार
उद्दीप्तमान हसीन अवनि आलम


अघम संवेगहीन अनी अहवाल
भावशून्य शिथिल पड़ जाती जहां
दहल  उठती  रुह की काया
वहीं अरुणिमा  समरसता  सानंद

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