पहली बूंदे
सावन की पहली बूंदे
जब पड़ती है धरा पर
लहर उठती इस मही से
सीलन कोरक प्रतिमान
उमंग भरी व्योम धरा सिंधु
प्रसून मंजर मंदल प्रस्फुटित
आदाब कर उस तुंग व्योम को
अभ्युन्नति हो इस गर्दिश सुंद
खलक तंज मे श्वास का खौफ
क्यों निर्वाण हो रहे हरित धरा
प्रभूत अतृप्त तृष्णा क्यों जहां
प्रसार नहीं , है यह सर्वनाश
सुनो, जानो, समझो इस धरा को
सतत वर्धन दस्तूर साहचर्य रहा
मुहाफ़िज़ खिदमत कर अभिसार का
देही प्राणवायु इंतकाल को बचा
निजाम फरमान हुक्मबरदारी कर
अंगानुभूति जन को अग्रसर कर
निलय - निकेतन पर्यावरण जहां
वैयक्तिक जीवंतता वसुंधरा वहां
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