द्युतिमा राग
लम्बे - लम्बे तरुवर धरे
प्रकृति मेरुदण्ड क्रान्ति है
निदाघ से सदा बचाती हमें
प्राणवायु का करती अभिदान
सारिका की नाद रुचिर
षुष्प कलित की परवाना है
शकुन्त सुकून की नीन्द लेती
मख़लूक की जहां रैन बसेरा है
पल्लव - मन्दल से आच्छादित
हरियाली ताज्जुब तस्दीक जहां
अलङ्ग - अलङ्ग कान्तार अनुकृति
अवरज माँझ दीर्घ अनुहार
वृत्ति जिदगी की मनुहसर रहा
रफ़्ता - रफ़्ता पुरोगामी परवरिश
अभिषिक्त करती देवान्न मही
अम्बु दीप्ति वाति आलम्ब
ख़िजाँ शरद सदाबहार नाही
प्रस्फुटित होती नव्य माधव में
मुकुर अनादि द्युतिमा राग
अर्णव तीर अनुषङ्ग कलित धरा
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