साधना

कर साधना हो मुसाफिर
जलसा से हीं पृथक हो जा
अर्जुन की गांडीव तू बन
बन जा श्री कृष्ण सुदर्शन

महासमर के डगर पर सदा
व्योम की उस अनन्त तक
 रख आस सत्यनिष्ठ कर्तव्य की
कामयाबी की उस बुलन्दी को छू

रह  अचल उम्मीदों को  रख
समय का पाखी  तेरे पास
वक्त की अहमियत आलोक
गुमराह न होना अपने पथ से

शून्यता की नभ को न देख
चढ़ जा उस अगम नग पर
ख्वाबों  की  जंजीरों  से
अपने महत्वाकांक्षा समझ

ब्योहारों  के  बयारों  संग
इसरारों का  उर बाड़व रख
मुकद्दर का  प्रभा गगन  है
हौंसला का अवदान तेरे पास

उन्मादों का हैं दास्तां जहां
सत्य  राह पर  चल सदा
ज़िन्दगी का यहीं मकसद जहां
विजय का भी माधुर्य सदा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)

आंकड़ों का सारणीकरण तथा सारणी के अंग Part 2 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics