भोर सारङ्ग



दूर से आती रश्मि आदित्य
प्रकाश पुञ्ज की धड़कन है
वहीं खुशबू की अलग नजीर
क्या खूबसूरती हमार गाँव है !

हिलकोरे करती सरसों डाल
बयार   के   बहारों   सङ्ग
मान्दगी यतीम तर्पित पीर
परिणति प्रारब्ध रन्जिदा रही

विदग्ध भरी कृषिवल आमोद
बारहिं बारा आफत सहतेउँ  तासु
जलप्रलय ऊसर असार तुषार धरा
विवशता रही बुभुक्षा  सम्भार

पुन्नाग निर्घात अभ्रभेदी रहा
ऊर्ध्वमुखी दुरन्त ग्रामीय नेही
अक्षोभ रहा अस्तगत आच्छन्न
अनाविल अनासक्त छायामय

व्यामोह ज्योत्स्ना सौम्य निश्चलता
भोर  सारङ्ग  चारु  नव्य  चेतन
विहगम कलवर घनानन्द - सी उमङ्ग
द्यौ  विदित होता  जग  सन्सार

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