मां की पीड़ा



मुफलिस मां की पीड़ा
जग में समझे कौन
 रोती-बिलखती सदैव
एक रोटी, शिशु के लिए

आसरा नहीं किसी का
इम्दाद  की चाह भी नहीं
बुभुक्षित शिशु को देखके
अन्तर्भावना प्रज्ज्वलित उठती

अपने वक्षस्थल के दहन से
नियति का अपकृष्टता क्या ?
भूख  मेरी  कमजोरी नहीं
बस शिशु मेरे भूखें न हो

कराहने का दिलकशी नहीं
बस एक रोटी, तकदीर में नहीं
न जाने क्या होगा अञ्जाम
है सत्यनिष्ठा कर्तव्य मेरी शक्ति

मां की आह्लाद का क्या सङ्गम !
 बच्चें की जुहु क्रन्दन आश्रुति हो
 मां की सच्चिदानन्द प्रीति महिमा 
अञ्जलिबद्ध आस्था आकाङ्क्षा है







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