पूछूं मैं क्या ?


अन्तःकरण का सन्ताप नहीं
आहलाद का अभिनन्दन है
लोक जगत का पूछूं मैं क्या ?
पीतवास आपगा  सायक है

होता  ख़ुदग़र्ज़ी  रंक  जहां
नृशंसता ब्योहार का बहार
रुग्णता उपघात समावेश यहां
निवृत्त विराना आश्लेष इज़हार

संकुचित रहा प्रवाहमान सरिता
दिनेश  निदाघ  दिप्त - प्रचण्डमान
अनागत अनाहार अनधिकारिता
तवायफ़ उलफत जग अंघ्रिपान

अनात्मवाद अक्षोभ होता बेजान
चण्ड - दहन अभिहार ईप्सा
अकिञ्चन तिमिर वैताल अग्यान
अवहत अवसान परीप्सा - प्सा

उद्विग्नता प्रतिशोध प्रतिघात ज्वाला
विकृति विकार प्रलोभन आहत
देही - अलूप वजूद भी दीवाला
निपात जगत हो  रहा  अतिहत

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