हैवान क्यों
जात - पात का विष दञ्श
अस्पृश्य - लिहाज व्याल दृश
मवेशी साम्य निस्बत रहा
मानुष डङ्गर विदित क्यों ?
बिराना इंसान हैवान क्यों ?
आत्मग्राही आक्षिप्त नृलोक
हत प्रमाथ देहात्मवाद जहां
पाखण्ड अनाचार हर्ज अञ्जाम
आमिल दर्प - दमन आबरू
अभिवास रहा दज्जाल भव
मुलजिम नहीं, वों मनीषी है
महाविचि - करम्भबलुका कृतान्त मही
मानवीयता मातम करहा रही
मदीय व्यथा समझें कौन ?
सम्प्रति भव्यता में है अभिमर्षण
आत्मीय में हो रहा द्वेष - घृणा
विभूति बुभुक्षा जग - सन्सार
कर रहें क्यों हयात - चित्कार ?
त्राहिमाम - त्राहिमाम करता भव
ईश्वर नहीं, अनीश्वर अक़ीदा
टिप्पणियाँ