विश्व दर्शन हूँ
जो देश है वीर कुर्बानी की
विश्व दर्शन हूँ मैं वहां की
जिस देश में गंगा बहती है
खेत खलियान हरी-भरी रहती है
सभी सम्प्रदायों की एकता यहां
करते अखंड ज्योति महान तहां
भाषा की जननी संस्कृत यहां
महाकाव्यों वेदों का देते ज्ञान जहां
मोर्य गुप्त साम्राज्यों की वालिदा
यहां है युधिष्ठिर अशोक की धरा
मिलती है यहां भौगोलिक वैविध्य
तहजीब पञ्चमेल यहां पराविद्ध
सत्यमेव जयते उत्कर्ष नाद है
अक्षय दीप्ति सनातन धर्म अन्तर्नाद
दत्तचित्त हूँ उन ज्योति शून्यता
अन्तर्निवेश अन्तःकरण है उन अरुनता
मुक्ता रसज्ञा कतिपय धरा
आलिङ्गन - पाश अखिल उघरारा
वृहत अभेद सद्वृत्ति वतीरा
अनीक प्रीति निस्बत चीरा
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