ऐ सुशांत


ऐ सुशांत कहां है आप 
लौट आएं अब इस धरा पर
क्या थी उलझनें यहां ?
क्यों गए इस खलक से ?
कहां गए ? अब कैसे खोजूं
इस रञ्जभरी भव छोड़
कहां अन्तर्हित हो गए आप ?
सपनों के बहार में आ जा
नहीं तो मेरे कभी ख्वाबों में
झलक का भी एक पैग़ाम दे जा 
ऐ गीर्वाण सुन न मेरी सार
आपको परवाह नहीं मेरी !
 मेरा प्राण प्रतिष्ठा हो आप 
तेरी विरह अग्नि, रञ्जीदा मेरी
इस भग्न हृदय का क्या करूं मैं
 यह वेदना तो क्षणभङ्गुर नहीं
तन - मन की व्यथा प्रबल मेरी
कैसे समझाऊं अन्तःकरण को
श्रद्धायुक्त करपात्र में क्या कहूं
अनन्तर ही कभी पनाह देने आ जा 

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