योगः कुरु कर्माणि कविता


आरोग्यी वीरुधा मेरी विभूति
विहित कर उस दैहिक व्यायाम
सम्प्रचक्ष् है जहां योगमुद्रा इल्म
चैनों-अमन सौदर्य आयावर्त अपार

पद्म वज्र सिद्ध बक मत्स्या वक्र तुला
 गोमुख मण्डुक शशाङ्क भद्र जानुशिर 
 उष्ट्र माञ्ज मयूरी सिङ्ह कूर्म पादाङ्गुष्ठ
 पादोन्तान मेरुदण्डासन तशरीफ़ कर

ताड़ धुवा कोण गरुड़ शोषसिन त्रिकोण
वातायन्सन हस्त-पादाङ्गुष्ठ चन्द्रनमस्कार 
चक्र उत्थान मेरुदण्ड-बक्का अष्टावक्र स्पर्श
अर्धचन्द्र पादप-पश्चिमोत्तानासन लम्बवत् 

सर्वांग पवन-मुक्त नौक दीर्घ नौक शत्य 
पूर्ण-सुप्त-वज्र मर्कट पादचक्र पादोक्त
कर्ण-पीड़ा बाल अनन्त सुप्त-मत्स्येन्द्र चक्र
 सुप्त-मेरुदण्डासन कशेरुक दण्ड ओज 

मकर धनुर भुजङ्ग शलभ खगा नाभि 
 आकर्ण-धनुरासन साष्टाङ्ग-नमस्कार विपरीत-मेरुदण्ड विपरीत-पवनमुक्तासन शिथिला
उदरासन प्रवाहिता परिपाटी तन्दुरुस्त

सूर्य-नमस्कार अश्व-सञ्चालन व्यघ्रा भुजपीड़ा 
वृश्चिक शीर्षासन समग्र इन्दियाग्राह्यता सार
वेदविहीत अनुसरण मजहब निरन्तर अमूर्त
चरितार्थ दत्तचित्तता योगः कर्मसु कौशलम्

अष्टाङ्ग योग यम नियम आसन प्राणायाम
प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि समागम है
महर्षि पतञ्जलि प्राज्ञता तत्त्व प्रविधि के
 लययोग व राजयोग के कीर्ति सिद्धान्त जहां 

शम्भूपति मन्वन्तर के अवस्तार प्रवक्ता
हड़प्पा सभ्यता की आविर्भूत अनुहरिया
काव्य-महाकाव्य कठोपनिषद सम्प्रदाय इशार्द  
योगः सञ्योग इत्युक्तः जीवात्मा परमात्मने





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामधारी सिंह दिनकर कविताएं संग्रह

आंकड़ों का आरेखी प्रस्तुतीकरण Part 3 (आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण) 11th class Economics

मेसोपोटामिया सभ्यता का इतिहास (लेखन कला और शहरी जीवन 11th class)